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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
पौषधतिथि–संविभागाख्यानि इति व्रतानि - पञ्चाणुव्रतानि, गुणाइं - त्रीणि गुणव्रतानि, पोसहोववासाई ति-पोषं वृद्धिं धत्ते धारयतीति वा पौषधः - अष्टमी - चतुर्दशी पूर्णिमामावास्यादिपर्वदिनानुष्ठेयो व्रतविशेषस्तत्रोपवासः ।" अर्थात् पर्व के दिनो में पौषधोपवास करना । वह व्रत चार प्रकार का वर्णन किया गया है। आहार - पौषध, शरीर - पौषध, सत्कार - पौषध और ब्रह्मचर्य - पौषध ।
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कहने का तात्पर्य यह है किस पहली प्रतिमा में आत्मा सम्यग् - दर्शन के अतिरिक्त अन्य कोई भी नियम धारण नहीं करता, नांही वह आत्मा उक्त गुणों में प्रविष्टि होता है । वह श्रावक के द्वादश व्रतों को सम्यक्तया पालन नहीं करता । किन्तु सम्यक्त्व का निरतिचार - पूर्वक पालन करता है, अर्थात् सम्यग-दर्शन का पालन विधि पूर्वक करता है । इस प्रतिमा वाला अवृत्ति - सम्यग्दृष्टि होता है । वह सम्यग् - दर्शन से विभूषित होने के कारण शुक्ल - पाक्षिक होता है । इस प्रतिमा का काल-मान एक मास है । इस प्रकार पहली दर्शन - प्रतिमा का वर्णन किया गया है ।
अब सूत्रकार इसके अनन्तर दूसरी प्रतिमा का विषय वर्णन करते हैं:अहावरा दोच्चा उवासग-पडिमा, सव्वधम्म- रुई यावि भवति । तस्स णं बहूइं सीलवय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्टवियाइं भवंति से णं सामाइयं देसावगासियं नो सम्मं अणुपालित्ता भवति । दोच्चा उवासग-पडिमा ||२||
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अथापरा द्वितीयोपासक - प्रतिमा, सर्व-धर्म- रुचिश्चापि भवति । तस्य नु बहवः शीलव्रत - गुणविरमण-प्रत्याख्यान- पौषधोपवासाः सम्यक् प्रस्थापिता भवन्ति । स नु सामायिकं देशावकाशिकं नो सम्यगनुपालयिता भवति । द्वितीयोपासक - प्रतिमा ||२||
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पदार्थान्वयः - अहावरा - इसके अनन्तर दोच्चा- दूसरी उवासग-पडिमा - उपासक - प्रतिमा है । सव्व-धम्म-रुई यावि-सर्व-धर्म में रुचि भवति होती है । तस्स - वह बहूई -बहुत सीलवय - शील- व्रत गुण-गुण-व्रत वेरमण - विरमण - व्रत पच्चक्खाण - प्रत्याख्यान-व्रत और पोसहोववासाइं - पौषधोपवास को सम्मं - सम्यक् प्रकार पट्ठवियाइं भवंति - आत्मा में
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