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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
I
प्रज्ञा या बुद्धि की विचरणा है । इसी प्रकार वह आस्तिक दृष्टि भी होता है । आस्तिक आत्मा सम्यग् -वादी होने पर वह मोक्ष - मार्ग की ओर प्रयत्नशीन होता है, अतः वह मोक्ष-वादी भी हो जाता है । वह पदार्थों के स्वरूप को द्रव्य-गुण- पर्याय - वत् मानता है, वह नरक, तिर्यक्, मनुष्य और देव-लोक को मानता है । वह मानता है कि मनुष्य-लोक की अपेक्षा यह लोक और मनुष्य - गति के बिना पर लोक होता है । वह जो पदार्थ जिस रूप में विद्यमान है उसको उसी रूप में मानता है, अर्थात माता, पिता, अर्हन्त, चक्रवर्ती आदि को तदुचित रूप में स्वीकार करता है । वह मानता है कि सुकृत कर्मों का फल अच्छा फल होता है और दुष्कृत कर्मों का दुःखद फल होता है, क्योंकि आत्मा का अस्तित्व भाव उसके किये हुए कर्मों के साथ है। वे कर्म पाप या पुण्य रूप होते हैं । उनके वशीभूत आत्मा को परलोक में अपने कर्मों के अनुसार सुख या दुःख का अनुभव करना पड़ता है । कर्म - कलह से निर्मुक्त होने पर आत्मा को मोक्ष होता है और वह निर्वाण - पद की प्राप्ति करता है जो व्यक्ति आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करता है वह स्वर्ग, नरक, तिर्यक, पुण्य, पाप, संवर और निर्जरा आदि पदार्थों को सहज ही में स्वीकार कर सकता है ।
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आत्मा की अस्तित्व - सिद्धि और नास्तिक-मत का खण्डन जैन - न्याय ग्रन्थों में विस्तृत रूप से किया गया है । जिज्ञासुओं को उन ग्रन्थों का अवलोकन अवश्य करना चाहिए | उनमें प्रौढ़ युक्तियों द्वारा नास्तिक-मत का खण्डन किया गया है । अतः आस्तिक जिन पदार्थों की वास्तविक सत्ता देखता है उन्हीं में 'अस्तित्व - भाव' स्वीकार करता है और जो पदार्थ खर- विषाण-वत् कोइ सत्ता ही नहीं रखते उनमें 'नास्तित्व-भाव' मानता है । इसीलिए उसको सम्यग्वादी कहा गया है । सम्यग्वाद में पदार्थों की नित्यता और अन्त्यता द्रव्य और पर्याय, सम्यग् नीति से मानी जाती है, जैसे द्रव्य की अपेक्षा से आत्मा नित्य है और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य । इसी प्रकार अन्य पदार्थों के विषय में भी जानना चाहिए ।
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यदि क्रियावादी सम्यग्वाद को स्वीकार कर सम्यग् नीति से पदार्थों का ज्ञान करता हुआ भी सम्यक् चरित्र में प्रविष्ट न होकर नास्तिकों के समान क्रूर कर्म करने लगे और उनके समान अपना आचरण बना ले तो मृत्यु के अनन्तर उसको भी नरक में जाना पड़ता है । किन्तु वह उत्तर दिशा के नारकियों में उत्पन्न होता है और उसको शुक्लपाक्षिक नारकी कहते हैं । वह आगामी काल में सुलभबोधी कर्मों का उपार्जन करता
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