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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
षष्ठी दशा
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पदार्थान्वयः-असमिक्खियकारी-बिना विचारे काम करने वाले और सव्वाओ-सब प्रकार के आस-घोड़ा हत्थि-हाथी गो-गौ महिसाओ-भैंस गवेलग-अजा और मेष दासी-दासी दास-दास कम्मकर-कर्मकर पोरुस्साओ-परुष-सम्ह से जाव-जीवाए-यावज्जीवन अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की सव्वाओ-सब प्रकार के कय-माल खरीदना विक्कय बेचना मासद्ध-मासरूवग-माषार्द्ध और माष रूपक संववहाराओ-संव्यवहार से जाव-जीवाए-जीवन पर्यन्त अप्पडिविरया-नित्ति नहीं की सव्वाओ-सब प्रकार के हिरण्ण-हिरण्य सुवण्ण-सुवर्ण धण-धन धन्न-धान्य मणि-मणि मोत्तिय–मौक्तिक संख-शंख सिल-शिल और प्पवालाओ-प्रवाल (मूंगा) से अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की जाव-जीवाए-सम्पूर्ण जीवन में सव्वाओ-सब प्रकार के कूडतुला-कूट तोल कूडमाणाओ-कूट माप से अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की जाव-जीवाए-जीवन पर्यन्त सव्वाओ-सब प्रकार के आरंभ-सभारंभाओ-आरम्भ और समारम्भ-सब प्रकार के पयण-अन्नादि स्वयं पकाना और पयावणाओ-अन्य लोगों से पकवाना इनसे अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की जाव-जीवाए-यावज्जीवन सव्वाओ-सब प्रकार के करण-करने और करावणाओ-कराने से अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की जाव-जीवाए-जीवन पर्यन्त सव्वाओ-सब प्रकार के कुट्टण-कुट्टण पिट्टण-पिट्टन तज्जण-तर्जन और तालणाओ-तथा वह-वध और बंध-बन्धन परिकिलेसाओ-सब प्रकार के क्लेश से अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की जाव-जीवाए-जीवन पर्यन्त जेयावण्णे-इन से भी अन्य तहप्पगारा-इस प्रकार के सावज्जा-निन्दनीय कर्म अबोहिया-अबोध उत्पन्न करने वाले कम्म-कर्म कज्जति-किये जाते हैं पर-पाण-दूसरे के प्राणों को परियावण-कडा-परितापन करने वाले कर्म कज्जंति-किये जाते हैं ततो वि य-उनसे भी अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की जाव-जीवाए-जीवन-पर्यन्त
मूलार्थ-नास्तिक-मतानुयायी बिना विचार करने वाले होते हैं । वे जीवन भर अश्व, हस्ति, गौ, महिष, अजा, मेष, दास, दासी, कर्मकर और पुरुष-समूह से निवृत्ति नहीं कर सकते; सब प्रकार के क्रय, विक्रय, माषार्द्ध या माषरूपक संव्यवहार से निवृत्ति नहीं कर सकते; सब प्रकार के हिरण्य सुवर्ण, धन, धान्य, मणि, मौक्तिक, शंख, शिल, प्रवाल से भी निवृत्ति नहीं कर सकते; सब प्रकार के कूट-तोल, कूट-माप, आरम्भ, समारम्भ, पचन, पाचन, करना, कराना, कूटना, पीटना, तर्जना, ताड़ना, पकड़ना, मारना
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