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पंचमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
मूलार्थ-जैसे सेनापति के मारे जाने पर सारी सेना भाग जाती है इसी प्रकार मोहनीय कर्म के क्षय हो जाने पर शेष सब कर्मों का नाश हो जाता है ।
टीका-इस सूत्र में भी पूर्वोक्त विषय पूर्व-सूत्रोक्त रीति से अर्थात् उपमा द्वारा ही प्रतिपादन किया गया है । जैसे-संग्राम में सेनापति के मारे जाने पर जिस प्रकार शेष सेना युद्ध क्षेत्र से नष्ट हो जाती है अर्थात् युद्ध छोड़कर भाग जाती है इसी प्रकार मोहनीय कर्म के नाश हो जाने पर शेष कर्म-समूह भी नाश हो जाता है ।। __ इन दृष्टान्तों से सिद्ध होता है कि सब कर्मों में मोहनीय कर्म ही प्रधान है, जिसके नाश हो जाने पर शेष कर्म सुगमतया नाश हो जाते हैं । अतः सबसे पहले इसी के नाश करने का उपाय करना चाहिए ।
सूत्रकार पूनः उक्त विषय का ही वर्णन करते हैं :धूम-हीणो जहा अग्गी खीयति से निरिंधणे | एवं कम्माणि खीयंति मोहणिज्जे खयं गए ।। १३ ।। धूम-हीनो यथाग्निः क्षीयतेऽसौ निरिन्धनः । एवं कर्माणि क्षीयन्ते मोहनीये क्षयं गते ।। १३ ।।
पदार्थान्वयः-जहा-जैसे से-वह (प्रसिद्धि दिखाने के लिए यहां इसका प्रयोग किया गया है इससे लोक-प्रसिद्ध अग्नि यह अर्थ निकलता है) अग्गी-अग्नि निरिंधणे-इन्धन के अभाव में धूम-हीणो-धूम रहित होकर खीयति-क्षय को प्राप्त हो जाती है एवं-इसी प्रकार मोहणिज्जे-मोहनीय कर्म के खयं गए-क्षय हो जाने पर कम्माणि-शेष सब कर्म खीयंति-नाश हो जाते हैं ।
मूलार्थ-जैसे धूम रहित अग्नि इन्धन के अभाव से क्षय हो जाती है इसी प्रकार मोहनीय कर्म के नाश होने पर शेष सब कर्म भी नाश हो जाते हैं।
टीका-पूर्वोक्त सूत्रों के समान इस सूत्र में भी पूर्वोक्त विषय उपमा से ही प्रतिपादन करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि जिस प्रकार धूम-रहित अग्नि इन्धन के अभाव
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