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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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सिद्धान्त यह निकला कि नास्तिक सिद्धान्तों को गंहण करने से ही आत्मा जीवन पर्यन्त ऊपर कह हुए पापों से निवृति नहीं कर सकता । - अब सूत्रकार उक्त विषय का ही वर्णन करते है:
सव्वाओ कसाय-दंतकट्ठ-हाण-मद्दण-विले वणसद्द-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लाऽलंकाराओ अप्पडिविरया जाव-जीवाए, सव्वाओ सगड-हर-जाण-जुग्गगिल्लिए-थिल्लिएसीया-संदमाणिया-सयणासण-जाण-वाहण-भोयण-पवित्थर-विधीतो अप्पडिविरया जाव-जीवाए ।
सर्वेभ्यः कषाय-दन्तकाष्ठ-स्नान-मर्दन-विलेपन-शब्द-स्पर्श-रस-रूप-गन्धमाल्यालङ्कारेभ्योऽप्रतिविरता यावज्जीवम्, सर्व-स्मात् शकट-रथयान-युग-गिल्लि- थिल्लि-शिविका-स्यन्दनिका-शयनासन-यान-वाहन-भोजनप्रविष्टर-विधिताऽप्रतिविरता याव-ज्जीवम् ।
पदार्थान्वयः-सव्वाओ-सब प्रकार के कषाय-रक्त वस्त्रादि दंतकट्ठ-दन्तधावन (ण्हाणा-स्नान मद्दण-मर्दन विलेवण-विलेपन सद्द-शब्द फरिस-स्पर्श रस-रस रूव-रूप गंध-सुगन्धितादि पदार्थ मल्लाऽलंकाराओ-माला या अलङ्कारों से जाव-जीवाए-यावज्जीवन अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की । सव्वाओ-सब प्रकार के सगड-शकट रह-रथ जाण-यान जुग-युग (जिसको पुरुष उठाते हैं) गल्लिए-हाथी का हौदा थिल्लिए-यान विशेष सीया-शिविका संदमाणिया-स्यन्द-मानिका (पालकी विशेष) सयणासण-शय्या और आसन जाण-शकटादि वाहण-बलीवर्दादि भोयण-भोजन पवित्थर-प्रविष्टर-घर संबन्धी उपकरण विधीतो-विधि से जाव-जीवाए-यावज्जीवन अप्पडिविरया-निवृत्ति नहीं की।
मूलार्थ-नास्तिक-मतानुयायी सब प्रकार के कषाय रङ्ग के वस्त्र, दन्त-धावन, स्नान, मर्दन, विलेपन, शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, माला और अलङ्कारों से यावज्जीवन निवृत्ति नहीं कर सकते और सब प्रकार की शकट, रथ, यान, युग, गिल्ली, थिल्ली, शिविका, स्यन्दमानिका,
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