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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
१७३
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सव्वाओ पाणाइ-वायाओ अप्पडिविरया जाव-जीवाए, जाव सव्वाओ परिग्गहाओ, एवं जाव सव्वाओ कोहाओ, सव्वाओ माणाओ, सव्वाओ मायाओ, सव्वाओ लोभाओ, पेज्जाओ, दोसाओ, कलहाओ, अब्भक्खाणाओ, पिसुण्ण-पर-परि-वायाओ, अरति-रति-माया-मोसाओ, मिच्छा-दंसण-सल्लाओ अप्पडिविरया जाव-जीवाए ।
सर्वस्मात् प्राणातिपातादप्रतिविरता यावज्जीवं, यावत्सर्वस्मात्परिग्रहात्, एवं यावत्सर्वस्मात् क्रोधात्, सर्वस्मात् मानात्, सर्वस्या मायायाः, सर्वस्मात् लोभात्, प्रेम्णः, द्वेषात्, कलहात्, अभ्याख्यानात्, पैशुन्य-पर-परिवादाभ्याम्, अरति-रति- माया-मृषाभ्यः, मिथ्या-दर्शन-शल्यादप्रतिविरता यावज्जीवम् ।
पदार्थान्वयः-सव्वाओ-सब प्रकार के पाणाइ-वायाओ-प्राणातिपात (जीव-हिंसा) से जाव-जीवाए-जीवन पर्यन्त अप्पडिविरया अप्रतिविरत हैं (अर्थात् सब तरह की जीव-हिंसा में लगे हुए हैं) जाव-यावत् सव्वाओ-सब प्रकार के परिग्गहाओ-परिग्रह से भी अप्रतिविरत हैं एवं-इस प्रकार जाव-यावत् सव्वाओ-सब प्रकार के कोहाओ-क्रोध से सव्वाओ-सब प्रकार के माणाओ-मान से सव्वाओ-सब प्रकार की मायाओ-माया से सव्वाओ-सब प्रकार के लोभाओ-लोभ से पेज्जाओ-प्रेम से दोसाओ-द्वेष से कलहाओ-कलह से अभक्खाणाओ-अभ्याख्यान (उसी के सामने मिथ्या-दोषारोपण) से पिसुण्ण-पर-परिवायाओ-चुगली और पर-परिवाद (दूसरों की निन्दा) से अरति-चिन्ता रति-प्रसन्नता माया-मोसाओ-माया और मृषा से मिच्छा-दंसण- सल्लाओ-मिथ्यादर्शन-शल्य से जाव-जीवाए-जीवन भर अपडिविरया-अप्रतिविरत हैं । __मूलार्थ-नास्तिक-वाद स्वीकार करने वाला जीवन भर प्राणातिपात और परिग्रह से निवृत्ति नहीं कर सकता । इसी प्रकार यावज्जीवन सब प्रकार के क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पिशुनता, पर-परिवाद, अरति, रति, माया, मृषा और मिथ्यादर्शन से भी निवृत्ति नहीं कर सकता ।
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