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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
पदार्थान्वयः - "हण - हनन करो छिंद-छेदन करो भिंद-भेदन करो" (लोगों को कहता हुआ नास्तिक) विकत्तए - अंगोपांग काटने वाला लोहिय-पाणी- रुधिर से जिसके हाथ लिप्त हैं, चंडे - जो चण्ड है रुद्दे-रुद्र है खुद्दे - क्षुद्र - बुद्धि है असमिक्खियकारी - बिना विचारे काम करता है साहस्सिए - साहसिक है उक्कंचण- घूस लेने वाला है वचण- छली है माई - माया करने वाला है नियडि - निकृति ( गूढ़ कपट) वाला है कूटमाई - गूढमायी साइ- संप ओग - बहुले - उक्त क्रियाओं को अत्यधिक प्रयोग में लाने वाला है दुप्पडियानंदे - दुष्टों का अनुगामी है दुव्वया- दुष्ट व्रत वाला है दुष्पडियानंदे - दुष्ट कार्यों के करने और सुनने से प्रसन्न होने वाला होता है निस्सीले - निःशील है निग्गुणे-क्षमा आदि गुणों से रहित है निम्मेरे-मर्यादा - रहित है निपच्चक्खाण-पोसहोववासे-जो प्रत्याख्यान नहीं करता और जो कभी पौषध या उपवास भी नहीं करता है असाहु - असाधु I
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मूलार्थ - नास्तिक लोगों के प्रति कहता फिरता है "जीवों का हनन करो, छेदन करो और भेदन करो" और स्वयं वह (जीवों को) काटने वाला होता है, उसके हाथ रुधिर (लहू) से लिप्त होते हैं । वह चण्ड, रौद्र और क्षुद्र है, बिना विचारे काम करता है, साहसिक बना फिरता है, लोगों से उत्कोच (घूस लेता है, उनको ठगता है । वह मायावी है, गूढ़ कपट रचता है, कूट माया जाल बिछाता है और माया को अत्यधिकतया प्रयोग में लाता है, दुश्शील है, दुष्ट संगति करता है, दुश्चर्य है, दुष्टों का अनुगामी होता है, दुष्ट व्रत धारण करता कृतघ्न है, निश्शील है, निर्गुण है, मर्यादा से बाहर हो जाता है । वह किसी तरह का त्याग नहीं कर सकता अर्थात् पौषध या उपवास कभी नहीं करता और असाधु है ।
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टीका - इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि नास्तिक - पन का जीवन पर क्या असर पड़ता है । जब एक व्यक्ति नास्तिक - सिद्धान्तों का अनुयायी हो जाता है तो सब से पहले उसके चित्त से दया का भाव उड़ जाता है और वह हिंसा को अपना लक्ष्य बनाकर लोगों से कहता फिरता है कि जिस तरह से भी हो सके जीवों को मारो ! अस्त्रादि से काटो ! उनका छेदन करो ! भेदन करो! स्वयं इन विचारों पर दृढ़ होकर अपने दास, दासी और पशु-वर्ग से ऐसा ही बर्ताव करता है । उसके हाथ प्राणि-वर्ग के बध से सदैव
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