________________
-
र
१५४
दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
पंचमी दशा
मूलार्थ-जिस प्रकार ताल-वृक्ष अग्र भाग के किसी तीक्ष्ण शस्त्र से छेदन किये जाने पर नीचे गिर पड़ता है, इसी प्रकार मोहनीय कर्म के क्षय हो जाने पर शेष सब कर्म भी नष्ट हो जाते हैं ।
टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि एक मोहनीय कर्म के नाश हो जाने पर शेष सब कर्म नष्ट हो जाते हैं । उक्त विषय को उपमा द्वारा पुष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि जिस प्रकार एक ताल-वृक्ष केवल अग्र-भाग के सूची सदृश तीक्ष्ण शस्त्र से छेदन किये जाने से सारे का सारा नष्ट हो जाता है इसी प्रकार प्रमुख मोहनीय कर्म के क्षय होने पर शेष ज्ञानावरणीय और अन्तराय आदि घातक कर्म भी नष्ट हो जाते हैं ।
श्लोक के पूर्वार्द्ध का कोई यह अर्थ करना चाहें कि सूची के समान पत्तों के छिन्न हो जाने पर ताल-वृक्ष वृक्षत्व ही छोड़ देता है तो ठीक प्रतीत नहीं होता । दिखाना तो केवल इतना ही है कि ताल-वृक्ष के मुख्य भाग के किसी शस्त्रादि से काटे जाने पर वृक्ष नष्ट ही हो जाता है, तभी उपमा भी घट सकती है ।
जिस प्रकार मनुष्य के मस्तक के कट जाने पर शेष सब अङ्ग आत्मा और प्राण-वायु से शून्य हो जाते हैं, वृक्ष की जड़ कट जाने पर शेष सम्पूर्ण वृक्ष नीचे गिर जाता है, इसी प्रकार मोहनीय (अज्ञानता) कर्म के क्षय हो जाने पर शेष सब कर्मों का तत्काल ही नाश हो जाता है । सूची शब्द यहां सुई के समान तीक्ष्ण शस्त्र का वाचक है |
सूत्रकार पूनः उक्त विषय का ही वर्णन करते हैं :सेणावतिमि निहते जहा सेणा पणस्सति । एवं कम्माणि णस्संति मोहणिज्जे खयं गए ।। १२ ।। सेनापतौ निहते यथा सेना प्रणश्यति । एवं कर्माणि नश्यन्ति मोहनीये क्षयं गते ।। १२ ।।
पदार्थान्वयः-जहा-जैसे सेणावतिमि-सेनापति के निहते-मारे जाने पर सेणा-सेना पणस्सति-नाश हो जाती है एवं-इसी प्रकार मोहणिज्जे-मोहनीय कर्म के खयं गए-नाश होने पर कम्माणि-शेष सब कर्म णस्संति-नाश हो जाते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org