________________
awon
E
पंचमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
१५३
प्रतिमायां विशुद्धायां मोहनीये क्षयं गते । अशेष लोकमलोकञ्च पश्यति सुसमाहितः ।। १० ।।
पदार्थान्वयः-पडिमाए-प्रतिज्ञा के विसुद्धाए-शुद्ध आराधन किये जाने पर मोहणिज्ज-मोहनीय कर्म के खयं गयं-क्षय होने पर सुसमाहिए-सुसमाहितात्मा असेसं-सम्पूर्ण लोग-लोक च-और अलोग-अलोक को पासेति-देखता है ।
मूलार्थ-प्रतिज्ञा के शुद्ध आराधन किये जाने पर और मोहनीय कर्म के क्षय हो जाने पर सु-समाधिस्थ आत्मा सम्पूर्ण लोक और अलोक को देखता है । __टीका-इस सूत्र में मोहनीय कर्म के क्षय होने से उत्पन्न होने वाले सर्व-दर्शन का वर्णन किया गया है । जैसे-जिस मुनि ने साधु की मासिकी आदि बारह प्रतिज्ञाओं का ठीक-२ पालन किया हो और साधु वेष में रहकर अपने सब नियमों का भी दृढ़ रहा हो अथवा प्रतिज्ञात पञ्च-महाव्रतों का निरतिचार-पूर्वक आसेवन करता रहा हो, उसके मोहनीय कर्म सर्वथा क्षय हो जाते हैं और उससे वह चारित्र-समाधि-युक्त होता हुआ सम्पूर्ण लोक और अलोक को देखता है; क्योंकि मोहनीय कर्म का उदय भी सर्व-दर्शी होने में रुकावट पैदा करता है । जब उसका सर्वथा क्षय हो जाएगा तो आत्मा अवश्य ही सर्व-दर्शी हो जाएगा किन्तु ध्यान रहे कि सर्व-दर्शी बनने के लिए शुद्ध अध्यवसायों से साधु की बारह प्रतिज्ञाएं और पञ्च-महाव्रतों का निरतिचार पालन करना चाहिए ।
सूत्रकार पुनः उक्त विषय का ही विवरण करते हैं:जहा मत्थय सूइए हंताए हम्मइ तले | एवं कम्माणि हम्मति मोहणिज्जे खयं गए ।। ११ ।। यथा मस्तके सूच्याः हते हन्यते तलः । एवं कर्माणि हन्यन्ते मोहनीये क्षयं गते ।। ११ ।।
पदार्थान्वयः-जहा-जैसे मत्थय-मस्तक में सूइए-सूची (सुई) से हंताए-छेद किये जाने पर तले-ताल-वृक्ष हम्मइ-गिर पड़ता है एवं-इसी प्रकार मोहणिज्जे-मोहनीय कर्म के खयं गए-क्षय हो जाने पर कम्माणि-शेष कर्म भी हम्मंति-नष्ट हो जाते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org