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पंचमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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समाधि उत्पन्न हो उसको काल-समाधि कहते हैं । भाव-समाधि ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप रूप होती है । जिस समय उक्त चारों में चित्त एकाग्र वृत्ति से लग जाय उस समय भाव-समाधि की उत्पत्ति होती है । किन्तु यह सब क्षेत्र आदि की विशुद्धि से ही होती है । यदि क्षेत्र आदि शुद्ध होंगे तो चित्त अनायास ही समाधि की ओर ढल जायगा ।
इस प्रस्तुत दशा में भाव-चित्त-समाधि का ही वर्णन किया गया है । उसका पहला सूत्र निम्नलिखित है:___ सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं, इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहि-ठाणा पण्णत्ता । कयराइं खलु ताई थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहि-ठाणा पण्णत्ता ? इमाइं खलु ताई थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहि-ठाणा पण्णत्ता, तं जहाः
श्रुतं मयायुष्मन् ! तेन भगवतैवमाख्यातं, इह खलु स्थविरैर्भगवद्भिर्दश चित्त-समाधि-स्थानानि प्रज्ञप्तानि, कतराणि खलु तानि स्थविरैर्भगवदिभर्दश चित्त-समाधि-स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? इमानि खलु तानि स्थविरैर्भगवदिभर्दश चित्त-समाधि-स्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाः
पदार्थान्वयः-आउसं-हे आयुष्मन् शिष्य ! मे-मैंने सुयं-सुना है तेणं-उस भगवया भगवान् ने एवं-इस प्रकार अक्खायं-प्रतिपादन किया है इह-इस जिन-शासन में खलु-निश्चय से थेरेहि-स्थविर भगवंतेहिं-भगवंतों ने दस-दश चित्त-समाहि-चित्त-समाधि के ठाणा-स्थान पण्णत्ता-प्रतिपादन किये हैं । (शिष्य ने प्रश्न किया) कयरा-कौन से खलु-निश्चय से ताई-वे थेरेहिं-स्थविर भगवंतेहिं-भगवन्तों ने दस-दश चित्त-समाधि के ठाणा-स्थान पण्णत्ता-प्रतिपादन किए हैं ? (गुरु उत्तर में कहते हैं) इमाइं-ये खल-निश्चय से ताई-वे थेरेहिं-स्थविर भगवंतेहिं-भगवन्तों ने दस-दश चित्त-समाहि-चित्त-समाधि के ठाणा-स्थान पण्णत्ता-प्रतिपादन किये हैं तं जहा-जैसे:
मूलार्थ-हे आयुष्मन् शिष्य ! मैंने सुना है उस भगवान् ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है, इस जिन-शासन या लोक में स्थविर भगवन्तों ने दश चित्त-समाधि के स्थान प्रतिपादन किये हैं, शिष्य ने प्रश्न किया-कौन से
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