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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
गया है, जैसे- चतुर्थ आरक के अन्तिम भाग में एक अति मनोहर और नागरिक गुणों से युक्त बाणिज्यग्राम नाम नगर था । उसके बाहिर ईशान कोण में एक अति मनोहर दूतिपलाशक उद्यान था । उसमें एक दूतिपलाशक नाम वाले यक्ष का मन्दिर था । वह उस समय जगद् - विख्यात हो रहा था । अनेक यात्री लोग वहां आते थे और प्रत्यक्ष फल पाते थे । उसके समीप ही एक बड़ा भारी वृक्ष-समूह था, जिसके मध्य में एक अशोक वृक्ष के नीचे एक पार्थिव शिलापट्टक था, वह वहां सिंहासन रूप में विद्यमान था । उस . नगरी में एक न्यायशील, धर्म परायण और सम्पूर्ण राज-गुणों से युक्त जितशत्रु नाम राजा राज्य करता था । उसकी पतिव्रता और सर्वगुण सम्पन्न धारणी नाम की रानी थी । एक समय श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामी देश में धर्म प्रचार करते हुए उस बाणिज्यग्राम नगर में पहुंचे । वहां नगर के बाहर दूतिपलाश चैत्य (उद्यान) के पूर्वोक्त अशोक वृक्ष वाले पृथिवी - शिला-पट्टक पर साधु-सङ्ग के साथ विराजमान हुए । महाराजा जितशत्रु और अन्य नगर निवासी श्री भगवान् के आगमन का शुभ समाचार पाकर बड़े उत्सव के साथ, भगवान् के दर्शन करने के लिए तथा उनके श्रीमुख से धर्मामृत पान करने के लिए, • उनकी सेवा में उपस्थित हुई श्री भगवान ने प्रेम से उनको धर्मामृत पान कराया, उससे आनन्दित होकर जनता उनके यशोगान में तन्मयी होगई और सर्ववृत्ति तथा देशवृत्ति धर्म को ग्रहण कर नगर को वापिस चली गई । यही सम्पूर्ण उपोद्घात का सारांश है ।
पंचमी दशा
इस सूत्र में 'काल' और 'समय' दो शब्द ऐसे हैं जो प्रायः एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, किन्तु यहां इनके अर्थ में परस्पर अन्तर है । 'काल' शब्द से यहां 'अवसर्पिणी' काल के चतुर्थ विभाग का बोध होता है और 'समय' शब्द से श्री भगवान् महावीर स्वामी के समकालीन नगर आदि का ।
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'कालेणं' और 'समएणं' में हेतुभूत में तृतीया है "तेन कालेन - अवसर्पिणी चतुर्थारकलक्षणेन हेतुभूतेन । तेन समये तद्विशेषभूतेन हेतुना वणिग्ग्रामो नगरो होत्था - अभवदासीदित्यर्थः " इस तृतीया का संस्कृत में 'तस्मिन् काले तस्मिन् समये'- सप्तम्यन्त अनुवाद किया गया है । इसमें भी दोष नहीं है, क्योंकि आर्ष प्राकृत में प्रायः सप्तमी विभक्ति के अर्थ में तृतीया विभक्ति आ ही जाती है । अथवा 'णं' को वाक्यालङ्कार अर्थ में मानकर और 'तकार में विद्यमान एकार को "करेमि" "भंते" आदि में विद्यमान एकार के समान आगम रूप मानकर 'ए' शब्द भी सप्तम्यर्थ को प्रतिपादन कर सकता है, अतः "तेणं कालेणं" "तेणं समएणं" का "तस्मिन्काले तस्मिन्समये" अनुवाद उचित ही हे। इसका ज्ञान प्राकृत व्याकरण से भली प्रकार हो सकता
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