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पंचमी दशा
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हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
अवधि-दर्शनं वा तस्यासमुत्पन्न - पूर्वं समुत्पद्येत, अवधिना लोकं द्रष्टुम्; मनः पर्यव ज्ञानं वा तस्यासमुत्पन्न - पूर्वं समुत्पद्येत, अन्तो मनुष्य-क्षेत्रेष्वर्द्ध- तृतीय- द्वीप - समुद्रेषु संज्ञिनां पञ्चेन्द्रियाणां पर्याप्तकानां मनोगतान् भावान् ज्ञातुम्; केवल-ज्ञानं वा तस्यासमुत्पन्न - पूर्वं समुत्पद्येत, केवल-कल्पं लोकालोकं ज्ञातुम्; केवल दर्शनं वा तस्यासमुत्पन्न -पूर्वं समुत्पद्येत, केवल-कल्पं लोकालोकं द्रुष्टुम्; केवल-मरणं वा तस्यासमुत्पन्न-पूर्वं समुत्पद्येत, सर्व - दुःख प्रहाणाय ।। १० ।।
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पदार्थान्वयः–ओहि-दंसणे - अवधि - दर्शन से - उसको असमुप्पण्ण- पुव्वे - असमुत्पन्न - पूर्व समुप्पज्जेज्जा- - उत्पन्न हो जाय तो ओहिणा - अवधि - दर्शन द्वारा लोयं पासित्तए-लोक को देखता है । मण-पज्जव णाणे - मनः पर्यव - ज्ञान से उसको असमुप्पण्ण-पुव्वे - पूर्व अनुत्पन्न समुपज्जेज्जा - - उत्पन्न हो जाय तो वह मणुस्स क्खित्तेसु - मनुष्य क्षेत्र के अंतो- भीतर अड्ढाइज्जेसु-अढ़ाई दीव-समुद्देसु - द्वीप - समुद्रों में सण्णिणं-संज्ञी पंचिंदियाणं - पञ्चेन्द्रियों और पज्जत्तगाणं-पर्याप्ति-पूर्ण जीवों के मणो गए भावे - मनोगत भावों को जाणित्तए-जान लेता है । केवल-णाणे - केवल ज्ञान से उसको असमुप्पण्ण-पुव्वे - पूर्व - अनुत्पन्न यदि समुप्पज्जेज्जा - उत्पन्न हो जाय तो केवल कप्पं- सम्पूर्ण लोयालोयं - लोकालोक को पासित्तए - देखता है केवल मरणे - केवल - ज्ञान युक्त मृत्यु से - उसको असमुप्पण-पुव्वे - पूर्व - अनुत्पन्न यदि समुप्पज्जेज्जा - उत्पन्न हो जाय तो आत्मा सव्व - दुक्ख - सब दुःखों से रहित हो जाता है । केवली भगवान् की मृत्यु किस लिए है ? सब दुःखों के पहाणाय - नाश करने के लिए । यह दशवां पूर्ण समाधि स्थान है ।
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मूलार्थ - पूर्व-अनुत्पन्न अवधि - दर्शन के उत्पन्न हो जाने पर अवधि-दर्शन द्वारा लोक को देखता है । पूर्व- अनुत्पन्न मनः पर्यव - ज्ञान के उत्पन्न हो जाने पर मनुष्य लोक के भीतर अढ़ाई द्वीप समुद्रों में संज्ञी, पंचेन्द्रिय-पर्याप्त जीवों के मन के भावों को जान लेता है । पूर्व-अनुत्पन्न केवल ज्ञान के उत्पन्न हो जाने पर सम्पूर्ण लोकालोक को जान लेता है । पूर्व- अनुत्पन्न केवल-दर्शन उत्पन्न हो जाने पर उसके द्वारा सम्पूर्ण लोकालोक को
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