________________
१३६
दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
मूलार्थ - आर्यो ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी श्रमण निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को आमन्त्रित कर कहने लगे "हे आर्यो ! निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को, जो ईर्या-समिति वाले, भाषा समिति वाले, एषणा-समिति वाले, आदान- भाण्ड -मात्र- निक्षेपणा समिति वाले, उच्चार-प्रश्रवण- थूक - नाक का मल, प्रस्वेद-मल की परिष्ठापना समिति वाले, मन-समिति वाले, वाक्समिति वाले तथा काय समिति वाले
टीका- अब प्रस्तुत दशा के विषय की ओर प्रमुख होते हुए सूत्रकार कहते हैं कि जब धर्मोपदेश हो चुका तब श्रवण भगवान् श्री महावीर स्वामी स्वयं श्रमण निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को आमन्त्रित कर कहने लगे "हे आर्यो ! जिन्होंने बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह छोड़ दिया है, जो परिषहों के सहने वाले हैं, प्रमाणपूर्वक भूमि देखकर गमन करने वाले हैं, ४२ दोषों का परित्याग कर भिक्षा लेने वाले अर्थात् एषणा गवेषणा द्वारा ही भिक्षा ग्रहण करने वाले हैं, सावद्य (दोष- युक्त) वाणी को छोड़ कर निरवद्य (निर्दोष) और मधुर वाणी बोलने वाले हैं, भाण्डोपकरण तथा वस्त्रादि को ग्रहण और निक्षेप (रखने) करने वाले हैं, पुरीष, प्रश्रवण और मुख, नाक तथा प्रस्वेद मल की यत्नपूर्वक परिष्ठापना करने वाले हैं और - (दूसरे सूत्र के साथ अन्वय है) ।
इस सूत्र में सम्पूर्ण षष्ठ्यन्त विशेषणों का सम्बन्ध कुशल - मन- प्रवर्तक और . कुशल-वाक् बोलने वाले मुनिवरों से ही है । उक्त गुणों से युक्त व्यक्ति ही समाध पात्र होता है ।
Jain Education International
पंचमी दशा
वक्ष्यमाण सूत्र का पूर्व सूत्र से ही अन्वय है: -
-गुत्तीणं वाय-गुत्तीणं काय-गुत्तीणं गुत्तिंदियाणं गुत्त- बंभयारीणं आयट्टीणं आय-हियाणं आय-जोइणं आय-परक्कमाण पक्खिय-पोसहिएसु समाहि पत्ताणं झियायमाणाणं इमाई दस चित्त-समाहि-ठाणाई असमुप्पण्ण-पुव्वाइं समुप्पज्जेज्जा, तं जहा:मनोगुप्तीनां वाग्गुप्तीनां काय गुप्तीनां गुप्तेन्द्रियाणां गुप्तब्रह्मचारिणाम्, आत्मार्थिनाम्, आत्म-हितानाम्, आत्म-द्युतीनाम्,
"
7
For Private & Personal Use Only
—
T
www.jainelibrary.org