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पंचमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
यहां पर तो तात्पर्य केवल इतने से है कि दूतिपलाशक चैत्य में भी भगवान् का धर्मोपदेश हुआ और परिषद् उसको सुनकर प्रसन्नचित्त हुई ।
इसके अनन्तर क्या हुआ इसका वर्णन सूत्रकार वक्ष्यमाण सूत्र में स्वयं करते हैं:
अज्जो ! इति समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंत्था य निग्गंत्थीओ आमंतित्ता एवं वयासी "इह खलु अज्जो ! निग्गंत्थाणं वा निग्गत्थीणं वा इरिया-समियाणं भासा-समियाणं एसणा-समियाणं आयाण-भंडमत्त-निक्खेवणा-समियाणं उच्चार-पासवणखेल-सिंघाण-जल-पारिठावणिया-समियाणं मण-समियाणं वाय-समियाणं काय-समियाणं ।"
"आर्याः !" इति श्रमणो भगवान् महावीरः श्रमणान् निर्ग्रन्थान निर्ग्रन्थ्यश्चामन्त्र्यैवमवादीत्, "इह (जिन-प्रवचने) खल्वार्याः ! निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा, ईर्या-समितानां, भाषा-समितानाम्, एषणा-समितांनाम्, आदान-भांड-मात्र-निक्षेपणा-समितानाम्, उच्चार-प्रश्रवण-खेल(निष्ठीवन)-श्लेष्ममल-परिष्ठापना-समितानां, मनःसमितानां, वाक्समितानां, काय-समितानाम्-"
पदार्थान्वयः-अज्जो इति-हे आर्यो ! समणे-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरे-महावीर स्वामी समणा-श्रमण निग्गत्था-निर्ग्रन्थों को य-और निग्गंत्थीओ-निर्ग्रन्थियों को आमंतित्ता-आमन्त्रित कर एवं-इस प्रकार वयासी-कहने लगे इह-इस जिन-शासन में या लोक में खलु-निश्चय से अज्जो-हे आर्यो ! निग्गंत्थाणं-निर्ग्रन्थों को वा-अथवा निग्गंत्थीणं-निर्ग्रन्थियों को इरिया-समियाणं-ईर्या-समिति वाले भासा-समियाणं-भाषा-समिति वाले एसणा-समियाणं- एषणा-समिति वाले आयाण-आदान (ग्रहण करना) भंड-भण्डोपकरण मत्त-पात्र विशेष निक्खेवणा-निक्षेपणा समियाणं-समिति वाले उच्चार-पुरीष पासवण-प्रश्रवण खेल-मुख का मल सिंघाण-नाक का मल जल्ल-प्रस्वेद का मल परिठावणिया-इन सबकी परिष्ठापना समियाणं-समिति वाले मण-समियाणं-मन-समिति वाले वाय-समियाणं-वचन-समिति वाले काय-समियाणं-काय–समिति वाले ।
Baida
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