________________
पंचमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
आत्मपराक्रमाणां, पाक्षिक-पौषधयोः समाधि-प्राप्तानां, (धर्मध्यानादि) ध्यायमानानामिमानि दश चित्त-समाधि-स्थाना-न्यसमुत्पन्नपूर्वाणि समुत्पद्यन्ते, तद्यथाः
पदार्थान्वयः-मण-गुत्तीणं-मनोगुप्ति वाले वाय-गुत्तीणं-वचन-गुप्ति वाले गुत्तिंदियाणं-इन्द्रिय गुप्त करने वाले गुत्त-बंभयारीणं-ब्रह्मचर्य की गुप्ति वाले आयट्ठीणं-आत्मार्थी आय-हियाणं-आत्मा का हित करने वाले आय-जोइणं-आत्मा के योगों को वश में करने वाले अथवा आत्म-ज्योति से कर्म-बन्धनों का नाश करने वाले आय-परक्कमाणं-आत्मा के लिए पराक्रम करने वाले पक्खिय-पोसहिएसु-पक्ष के अन्त में पौषध व्रत करने से समाहि-पत्ताणं-समाधि प्राप्त करने वाले झियाय-माणाणं-धर्म ध्यानादि शुभ ध्यान करने वाले मुनियों को इमाइं-ये दस-दश चित्त-समाहि-ठाणाइं-चित्त-समाधि के स्थान असमुप्पण्ण-पुब्वाइं-जो पूर्व अनुत्पन्न हैं वे समुपज्जेज्जा-समुत्पन्न हो जाते हैं | तं जहा-जैसे
मूलार्थ-मनोगुप्ति वाले, वचन-गुप्ति वाले, काय-गुप्ति वाले तथा गुप्तेन्द्रिय, गुप्त-ब्रह्मचारी, आत्मार्थी, आत्मा का हित करने वाले, आत्मा के योगों को वश करने वाले, आत्मा के लिये पराक्रम करने वाले, पाक्षिक-पौषध (व्रत) करने वाले, ज्ञानादि की समाधि प्राप्त करने वाले और धर्मादि शुभ ध्यानों का ध्यान करने वाले मुनियों को ये पूर्व अनुत्पन्न दश चित्त-समाधि के स्थान उत्पन्न हो जाते हैं । जैसे :
टीका-इस सूत्र का पूर्व सूत्र से अन्वय है और इसमें उक्त उपोद्धात का उपसंहार किया गया है । जैसे–मनोगुप्ति वाले, वचन-गुप्ति वाले, काय-गुप्ति वाले, कच्छप के समान इन्द्रियों को वश में करने वाले नौ प्रकार से ब्रह्मचर्य की गुप्ति धारण करने वाले, दीर्घ काल से पार होने के लिए अर्थात संसार-चक्र से आत्मा को पार करने के लिए कर्म-कलङ्क का परित्याग कर अपने स्वरूप में प्रविष्ट होने वाले, हिंसा और कषायों को छोड़कर आत्मा का हित करने वाले, कर्म रूपी इन्धन को जलाने के लिए आत्म-ज्योति धारण करने वाले, आत्मा की विशुद्धि के लिए पराक्रम करने वाले, अर्थात् स्वार्थ बुद्धि का त्याग कर निर्जरा के लिए ही पराक्रम करने वाले, पाक्षिक पौषध करने वाले, ज्ञान, दर्शन
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org