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चतुर्थी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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का तात्पर्य पुस्तकों को लेकर ताले में बन्द कर देने से नहीं, नांही बिना अर्थ-ज्ञान के मूलमात्र अध्ययन से है, अपितु मूल पाठ के अर्थ-ज्ञान-पूर्वक अध्ययन से है । ___ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि 'सूत्र' शब्द का क्या अर्थ है ? उत्तर में कहा जाता है कि जो अर्थों की सूचना करता है उसको सूत्र कहते हैं या सुप्तवत् अर्थ के बिना जिसका भाव समझ में न आए उसका नाम सूत्र है तथा जो अर्थों को सीता है वही सूत्र है अथवा जो सूत्रवत् मार्ग-प्रदर्शक है । अतः सूत्रों का अर्थ सहित विधि-पूर्वक अध्ययन करना चाहिए, जिससे वास्तविक श्रुत-ज्ञान की उपलब्धि हो ।
अब सूत्रकार विक्षेपणा-विनय का विषय वर्णन करते है:
से किं तं विक्खेवणा-विणए ? विक्खेवणा-विणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-अदिट्ठ-धम्म दिट्ट-पुव्वगत्ताए विणएइत्ता भवइ, दिठ्ठ-पुव्वगं साहम्मियत्ताए विणएइत्ता भवइ, चुय-धम्माओ धम्मे ठावइत्ता भवइ, तस्सेव धम्मस्स हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेसाए, अनुगमियत्ताए अब्भुढेत्ता भवइ । से तं विक्खेवणा-विणए ।।३।। ___ अथ कोऽसौ विक्षेपणा-विनयः ? विक्षेपणा-विनयश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अदृष्ट-धर्मं दृष्ट-पूर्वकतया विनेता भवति, दृष्ट-पूर्वकं साधर्मिकतया विनेता भवति, च्युतं धर्माद् धर्मे स्थापयिता भवति, तस्यैव धर्मस्य हिताय, सुखाय, क्षमाय, निःश्रेयसाय, अनुगामिकतया ऽअभ्युत्थाता भवति । सोऽयं विक्षेपणा-विनयः ।।३।।
पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सा विक्खेवणा-विणए-विक्षेपणा विनय है ? (गुरू कहते हैं) विक्खेवणा-विणए-विक्षेपणा-विनय चउविहे-चार प्रकार का पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है तं जहा-जैसे-अदिट्ठ-धम्म-जिसने पहिले सम्यक्-दर्शन नहीं किया है उसको दिट्ट-पुव्व-गताए-सम्यक् दर्शन में विणएत्ता भवइ-स्थापित करे किन्तु जो दिट्ट-पुव्वगं-दृष्ट-पूर्वक है उसको साहम्मियत्तए-साधर्मिकता में विणएइत्ता-स्थापन करे अर्थात् उसको सहधर्मी बनावे । चुय-धम्माओ-धर्म से गिरते हुए को धम्मे-धर्म में ठावइत्ता-स्थापन करता भवइ-है । तस्सेव-उसी धम्मस्स-धर्म के हियाए-हित के लिए
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