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चतुर्थी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सी भार-पच्चोरुहणया-भार-प्रत्यवरोहणता (विनय) है ? (गुरू कहते हैं) भार-पच्चोरुहणया-भार-प्रत्यवरोहणता (विनय) चउविहा-चार प्रकार की पण्णत्ता-प्रतिपादन की है तं जहा-जैसे असंगहिय-परिजण-संगहित्ता-असंग्रहीत-परिजन शिष्यादि का संग्रह करने वाला भवइ-हो सेह-शैक्ष को आयार-आचार और गोयर-गोचर विधि संगाहित्ता-सिखाने वाला भवइ-हो साहिम्मयस्स-सहधर्मी के गिलायमाणस्स-रुग्ण होने पर अहाथाम-यथाशक्ति वेयावच्चे-सेवा के लिए अब्भुट्टित्ता-तत्पर भवइ-हो साहम्मियाणं-सहधर्मियों के परस्पर अधिगरणंसि-क्लेश (झगड़ा) उप्पण्णंसि-उत्पन्न होने पर तत्थ-वहां अणिसित्तोवसिए-राग और द्वेष रहित होकर वसित्तो-वसता हुआ अपक्खग्गहिय-किसी के पक्ष विशेष को ग्रहण न करते हुए वसित्तो-वसता हुआ मज्झत्थ-मध्यस्थ का भाव-भूते-भाव रखते हुए सम्म-सम्यक ववहरमाणे-व्यवहार पालन करता हुआ तस्स-उस अधिगरणस्स-क्लेश के खमावणाए-क्षमापन पालन के लिए विउसमणत्ताए-उपशम करने के लिए सयासमियं-हर समय अब्भुट्टित्ता-उद्यत भवइ-हो कहं नु?-किस प्रकार ऐसा करे ? (गुरू कहते हैं) कलह शान्त हो जाने से साहम्मिया-सहधर्मी साधु अप्पकलहा-विपरीत शब्द नहीं करेंगे अप्पझंज्झा-अशुभ शब्द नहीं करेंगे अप्पतुमंतुमा-परस्पर 'तू' 'तू' शब्द नही कहेंगे और उनके संयम-बहुला-संयम बहुत होगा संवर-बहुला-संवर बहुत होगा समाहि-बहुला-समाधि बहुत होगी और अप्पमत्ता-अप्रमत्त होकर संजमेण-संयम और तवसा-तप से अप्पाणं-अपने आत्मा की भावेमाणाणं-भावना करते हुए एवं च-इस प्रकार विहरेज्जा-विचरेंगे णं-वाक्यालङ्कार अर्थ में है । से तं-यही भार-पच्चोरुहणया-भार-प्रत्यवरोहणता (विनय) है । एसा-यह खलु-निश्चय से थेरेहिं स्थविर भगवन्तेहिं-भगवन्तों ने सा-वह अढविहा-आठ प्रकार की गणि-संपया-गणि-संपदा पण्णत्ता-प्रतिपादन की है तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ इति-इस प्रकार चउत्था-चतुर्थी दसा-दशा समत्ता-समाप्त ।
मूलार्थ-भार-प्रत्यवरोहणता किसे कहते हैं ? भार-प्रत्यवरोहणता चार प्रकार की प्रतिपादन की गई है, जैसे-निराधार शिष्य आदि का संग्रह करना, नूतन दीक्षित शिष्य को आचार और गोचर विधि सिखाना, सहधर्मी के रोगी होने पर उसकी यथाशक्ति सेवा करना और सहधर्मियों में परस्पर कलह उपस्थित हो जाने पर, राग और द्वेष का परित्याग
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