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चतुर्थी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
से किं तं दोस- निग्धायणा - विणए ? दोस- निग्घायणा - विणए चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - कुद्धस्स कोहं विणएत्ता भवइ, दुट्ठस्स दोसं णिगिण्हित्ता भवइ, कंखियस्स कंखं च्छिदित्ता भवइ, आया-सुप्पणिहिए यावि भवइ । से तं दोस-निग्घायणा-विणए ।।४।।
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अथ कोऽसौ दोष-निर्घातन-विनयः ? दोष-निर्घातन-विनयश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः तद्यथा- क्रुद्धस्य कोप- विनेता भवति, दुष्टस्य दोषं निग्रहीता भवति, काङ्क्षावतः काङ्क्षां छेत्ता भवति, आत्म-प्रणिहितश्चपि भवति । सोऽयं दोष-निर्घातन-विनयः ||४||
पदार्थान्वयः - से किं तं वह कौन सा दोस-निग्घायणा- विणए-दोष - निर्घातन - विनय है ? वह चउविहे चार प्रकार का पण्णत्ते- प्रतिपादन किया गया है तं जहा - जैसे - कुद्धस्स - क्रुद्ध व्यक्ति के कोह-विणएत्ता भवइ - क्रोध दूर करने वाला है दुट्ठस्स- दुष्ट के दोस - दोष को णिगिण्हित्ता - निग्रह करने वाला भवइ - है कंखियस्स - काङ्क्षा वाले की कंखं - काङ्क्षा का छिंदित्ता - छेदन करने वाला भवइ - है और आया- अपनी आत्मा को सुप्पणिहिए यावि भवइ-अच्छे मार्ग पर लगाने वाला या भली प्रकार सुरक्षित रखने वाला है और जीवादि पदार्थों को अनुप्रेक्षा में स्थापित करने वाला है । से तं-यही दोस-निग्घायणा-विणए - दोष - निर्घातना - विनय है ।
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मूलार्थ - दोष-निर्घातना -विनय किसे कहते हैं ? दोष-निर्घातना - विनय चार प्रकार का प्रतिपादन किया गया है । जैसे- क्रोधी का क्रोध दूर करना, दुष्ट के दोषों को हटाना, आकांक्षित की काङ्क्षा को छेदन करना और आत्मा को अच्छे मार्ग पर लगाना । यही दोष-निर्घातना - विनय है ।
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टीका - इस सूत्र में दोष-निर्घातना विनय का विषय प्रतिपादन किया गया है । इस विनय का मुख्य उदेश्य कषाय आदि दोषों का विनाश करना है । वह चार प्रकार का होता है उनमें पहला भेद क्रोधी के क्रोध को दूर करना है । यदि गण में कोई शिष्य क्रोध-शील है तो गणी का कर्तव्य है कि मीढे वचनों से समझा बुझाकर इस तरह उसका
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