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द्वितीया दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।।
अब सूत्रकार प्रस्तुत अध्ययन का उपसंहार करते हुए कहते हैं:
एते खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं एकबीसं सबला पण्णत्ता-त्ति बेमि ।।
इति बिइया दसा समत्ता || एते खलु ते स्थविरैर्भगवद्भिरेकविंशतिः शबलाः प्रज्ञप्ता इति ब्रवीमि । इति द्वितीया दशा समाप्ता ।।
पदार्थान्वयः-एते-ये खलु-निश्चय से थेरेहि-स्थविर भगवंतेहिं भगवन्तों ने ते-वे एकबीसं-इक्कीस सबला-शबल दोष पण्णत्ता-प्रतिपादन किये हैं त्ति बेमि-इस प्रकार मैं कहता हूं । इति-इस तरह बिइया-दूसरी दसा-दशा समत्ता-समाप्त हुई ।
मूलार्थ-यही निश्चय से स्थविर भगवन्तों ने इक्कीस शबल-दोष प्रतिपादन किये हैं ।
___टीका-इस सूत्र में प्रस्तुत दशा का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि यही इक्कीस शबल दोष स्थविर भगवन्तों ने प्रतिपादन किये हैं । स्थविर भगवन्तों की उपमा निम्नलिखित प्रकार से दी गई हैं ।।
“अजिणा जिणसकासा जिणा इव अवितहं वागरमाणा” अर्थात् स्थविर भगवान् जिन तो नहीं हैं किन्तु जिन के समान हैं और जिनवत् यथार्थ (अवितथ) कहने वाले हैं । अतएव उनका यह कथन ग्रहण करने के योग्य है । तथा भगवद्-वचन समान कथन होने के कारण उनका कथन प्रामाणिक है ।
अङ्ग-शास्त्र, श्री समवायाङ्ग-सूत्र में उक्त विषय होने से, सर्व मान्य हैं । इसलिए ही “त्ति बेमि” (इति ब्रवीमि) सूत्र के अर्थ में कहा जाता है ।
श्री सुधर्माचार्य स्वामी जी अपने शिष्य श्री जम्बू स्वामी जी से कहते हैं “हे जम्बू ! जिस प्रकार मैंने श्री श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामी जी से उक्त विषय श्रवण किया था उसी प्रकार तुम से कहा है किन्तु अपनी बुद्धि से कुछ भी कथन नहीं किया ।"
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