________________
तृतीय दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
अब सूत्रकार फिर उक्त विषय की ही आशातना का निरूपण करते हैं:सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स कहं अच्छिदित्ता भवइ आसायणा सेहस्स ।।२६।।
शैक्षो रात्निकस्य कथां कथयतः कथामाच्छेत्ता भवत्याशातना शैक्षस्य ।।२६।।
पदार्थन्वयः - सेहे - शिष्य रायणियस्स- रत्नाकर के कहं कथा कहेमाणस्स - कहते हुए कहं- कथा अच्छिदित्ता - विच्छेद करे तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा - आशातना भवइ होती है ।
८५
मूलार्थ - शिष्य रत्नाकर के कथा करते हुए यदि कथा-विच्छेद करे तो उसको आशातना होती है ।
टीका- यदि रत्नाकर कथा कर रहा हो और शिष्य बीच ही में कुछ विघ्न उपस्थित कर श्रोताओं की मनो-वृत्ति पलट दे तो शिष्य को आशातना लगती है । जैसे- रत्नाकर धर्म कथा कर रहा हैं और श्रोतृ-गण दत्त - चित होकर सुन रहे हैं, शिष्य बीच ही में आकर "उठो! भिक्षा का समय हो गया है, यह कथा सुनने का समय नहीं । अभी अपना - २ काम करो, फिर भी कथा होगी" इत्यादि अनर्गल प्रलाप कर कथा - भङ्ग करदे और जब गुरू या रत्नाकर की एकत्रित की हुई जनता जाने लगे तो स्वयं कथा करनी प्रारम्भ करदे या कथा के बीच ही में गर्दभ, महिष आदि पशुओं के समान कोलाहल उत्पन्न कर दे अर्थात् ऐसा कोई भी कारण उपस्थित कर दे जिसे कथा-विच्छेद हो जाये तो शिष्य को आशातना लगती है ।
सारे कथन का आशय यह हुआ कि कथा - विच्छेद के लिये कभी भी प्रयत्न नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे जनता के चित्त में धर्म की ओर अप्रवृत्तिका भाव उत्पन्न हो सकता है ।
Jain Education International
अब सूत्रकार फिर उक्त विषय की ही आशातना का निरूपण करते हैं:सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुट्टियाए अभिन्ना अवुच्छिन्नाए अव्वोगडाए दोच्चंपि तच्चंपि तमेव कहं कहित्ता भवइ आसायणा सेहस्स ।। ३० ।।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org