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चतुर्थी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
अथ का सा मति-सम्पत् ? मति - सम्पच्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा अवग्रहमति-सम्पत्, ईहा-मति-सम्पत् अवा (पा) य-मति-सम्पत्, धारणा-मति - सम्पत् ।। अथ का सावग्रह-मति - सम्पत् ? अवग्रह-मति-सम्पत् षड्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- क्षिप्र-मवगृह्णाति, बहवगृह्णाति, बहुविधमवगृहणाति, ध्रुवमवगृह्णाति, अनिश्रितमवगृह्णाति, असंदिग्धमवगृह्णाति । सेयमवग्रह्नति सम्पत् । एवमीहा - मतिरपि । एवमवाय-मतिरपि । अथ का सा धारणा-मति-सम्पत् ? धारणा-मति-सम्पत् षड्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा बहु धारयति, बहुविधं धारयति, पुरातनं धारयति, दुर्द्धरं धारयति, अनिश्रितं धारयति, असंदिग्धं धारयति । सेयं धारणा - मति-सम्पत् ।।६।।
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पदार्थान्वयः-से किं तं - वह कौन सी मइ संपया-मति - सम्पदा है ? गुरू कहते हैं मइ - संपया-मति - सम्पदा चउ - व्विहा- चार प्रकार की पण्णत्ता - प्रतिपादन की हैं तं जहा-जैसे उग्गह- मइ - संपया - सामान्य अवबोध रूप मति-सम्पदा ईहा मइ संपया - विशेष अवबोध रूप ईहा - मति-सम्पदा अवाय मइ संपया - निश्चय रूप अवाय-मति संपदा धारणा-मइ- संपया - धारणा रूप धारणा - मति-सम्पदा से किं तं - हे भगवन् ! कौन सी वह उग्गह- मइ- संपया - अवग्रह - मति-सम्पदा है ? गुरू कहते हैं उग्गह- मइ- संपयाअवग्रह-मति - सम्पदा छ- व्विहा-छः प्रकार की पण्णत्ता - प्रतिपादन की है तं जहा- जैसे खिप्पं उगिण्हेइ - शीघ्र ग्रहण करता है बहु उगिण्हेइ-बहुत प्रश्नों को एक ही बार ग्रहण करता है बहु-विहं उगिण्हेइ- अनेक प्रकार से ग्रहण करता है धुवं उगिण्हेइ-निश्चल भाव से ग्रहण करता है अणिस्सियं उगिण्हेइ - निश्राय रहित ग्रहण करता है असंदिद्धं-सन्देह रहित उगिण्हेइ-ग्रहण करता है। से तं- यही उग्गह-मइ संपया - अवग्रह-मति - सम्पदा है एवं - इसी प्रकार ईहा मइ-वि- ईहा -मति भी जाननी चाहिए एवं और इसी प्रकार अवाय मइ-वि- अवाय-मति के विषय में भी जानना चाहिए । से किं तं कौन सी वह धारणा - मइ- संपया - धारणा - मति-सम्पदा है ? (गुरू कहते हैं ) धारणा-मइ-संपयाधारणा - मति-सम्पदा छ- व्विहा-छः प्रकार की पण्णत्ता - प्रतिपादन की है तं जहा - जैसे बहु धरेइ - बहुत धारण करता है बहु-विहं धरेइ अनेक प्रकार से धारण करता है पोराणं - पुरानी बात को धरेइ-धारण करता है दुद्धरं धरेइ-भंगादि दुर्धर को धारण
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