Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
## Fourth Chapter
**With Hindi Commentary**
**What is the nature of intellectual faculty?**
Intellectual faculty is of four types:
1. **Avagraha-mati-sampat** (faculty of grasping)
2. **Iha-mati-sampat** (faculty of desire)
3. **Avaya-mati-sampat** (faculty of certainty)
4. **Dharana-mati-sampat** (faculty of retention)
**What is Avagraha-mati-sampat?**
Avagraha-mati-sampat is of six types:
1. **Kshipra-avagrihnati** (grasps quickly)
2. **Bahuvagrihnati** (grasps many things)
3. **BahuvIdham-avagrihnati** (grasps many kinds of things)
4. **Dhruvam-avagrihnati** (grasps firmly)
5. **Anishritam-avagrihnati** (grasps without dependence)
6. **AsandIdgham-avagrihnati** (grasps without doubt)
This is Avagraha-mati-sampat. Similarly, Iha-mati and Avaya-mati are also to be understood.
**What is Dharana-mati-sampat?**
Dharana-mati-sampat is of six types:
1. **Bahudharayati** (retains many things)
2. **BahuvIdham-dharayati** (retains many kinds of things)
3. **Puratanam-dharayati** (retains old things)
4. **Durdharam-dharayati** (retains difficult things)
5. **Anishritam-dharayati** (retains without dependence)
6. **AsandIdgham-dharayati** (retains without doubt)
This is Dharana-mati-sampat.
**Word by Word Meaning:**
* **Se kim tam** - What is that?
* **Mai sampya** - Intellectual faculty
* **Guru kahte hain** - The teacher says
* **Mai sampya chau vviha** - Intellectual faculty is of four types
* **Panntta** - Explained
* **Tam jaha** - Like this
* **Uggah mai sampya** - Faculty of grasping
* **Iha mai sampya** - Faculty of desire
* **Avaya mai sampya** - Faculty of certainty
* **Dharana mai sampya** - Faculty of retention
* **Se kim tam** - What is that?
* **Uggah mai sampya** - Faculty of grasping
* **Guru kahte hain** - The teacher says
* **Uggah mai sampya chh vviha** - Faculty of grasping is of six types
* **Panntta** - Explained
* **Tam jaha** - Like this
* **Khippa uginhei** - Grasps quickly
* **Bahu uginhei** - Grasps many things
* **Bahu viham uginhei** - Grasps many kinds of things
* **Dhuru uginhei** - Grasps firmly
* **Anissiyam uginhei** - Grasps without dependence
* **Asandiddham uginhei** - Grasps without doubt
* **Se tam** - This is it
* **Uggah mai sampya** - Faculty of grasping
* **Evam** - Similarly
* **Iha mai vi** - Faculty of desire
* **Evam** - Similarly
* **Avaya mai vi** - Faculty of certainty
* **Se kim tam** - What is that?
* **Dharana mai sampya** - Faculty of retention
* **Dharana mai sampya chh vviha** - Faculty of retention is of six types
* **Panntta** - Explained
* **Tam jaha** - Like this
* **Bahudhare** - Retains many things
* **Bahu viham dhare** - Retains many kinds of things
* **Poranam dhare** - Retains old things
* **Duddharam dhare** - Retains difficult things
* **Anissiyam dhare** - Retains without dependence
* **Asandiddham dhare** - Retains without doubt
________________
चतुर्थी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
अथ का सा मति-सम्पत् ? मति - सम्पच्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा अवग्रहमति-सम्पत्, ईहा-मति-सम्पत् अवा (पा) य-मति-सम्पत्, धारणा-मति - सम्पत् ।। अथ का सावग्रह-मति - सम्पत् ? अवग्रह-मति-सम्पत् षड्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- क्षिप्र-मवगृह्णाति, बहवगृह्णाति, बहुविधमवगृहणाति, ध्रुवमवगृह्णाति, अनिश्रितमवगृह्णाति, असंदिग्धमवगृह्णाति । सेयमवग्रह्नति सम्पत् । एवमीहा - मतिरपि । एवमवाय-मतिरपि । अथ का सा धारणा-मति-सम्पत् ? धारणा-मति-सम्पत् षड्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा बहु धारयति, बहुविधं धारयति, पुरातनं धारयति, दुर्द्धरं धारयति, अनिश्रितं धारयति, असंदिग्धं धारयति । सेयं धारणा - मति-सम्पत् ।।६।।
Jain Education International
१०५
पदार्थान्वयः-से किं तं - वह कौन सी मइ संपया-मति - सम्पदा है ? गुरू कहते हैं मइ - संपया-मति - सम्पदा चउ - व्विहा- चार प्रकार की पण्णत्ता - प्रतिपादन की हैं तं जहा-जैसे उग्गह- मइ - संपया - सामान्य अवबोध रूप मति-सम्पदा ईहा मइ संपया - विशेष अवबोध रूप ईहा - मति-सम्पदा अवाय मइ संपया - निश्चय रूप अवाय-मति संपदा धारणा-मइ- संपया - धारणा रूप धारणा - मति-सम्पदा से किं तं - हे भगवन् ! कौन सी वह उग्गह- मइ- संपया - अवग्रह - मति-सम्पदा है ? गुरू कहते हैं उग्गह- मइ- संपयाअवग्रह-मति - सम्पदा छ- व्विहा-छः प्रकार की पण्णत्ता - प्रतिपादन की है तं जहा- जैसे खिप्पं उगिण्हेइ - शीघ्र ग्रहण करता है बहु उगिण्हेइ-बहुत प्रश्नों को एक ही बार ग्रहण करता है बहु-विहं उगिण्हेइ- अनेक प्रकार से ग्रहण करता है धुवं उगिण्हेइ-निश्चल भाव से ग्रहण करता है अणिस्सियं उगिण्हेइ - निश्राय रहित ग्रहण करता है असंदिद्धं-सन्देह रहित उगिण्हेइ-ग्रहण करता है। से तं- यही उग्गह-मइ संपया - अवग्रह-मति - सम्पदा है एवं - इसी प्रकार ईहा मइ-वि- ईहा -मति भी जाननी चाहिए एवं और इसी प्रकार अवाय मइ-वि- अवाय-मति के विषय में भी जानना चाहिए । से किं तं कौन सी वह धारणा - मइ- संपया - धारणा - मति-सम्पदा है ? (गुरू कहते हैं ) धारणा-मइ-संपयाधारणा - मति-सम्पदा छ- व्विहा-छः प्रकार की पण्णत्ता - प्रतिपादन की है तं जहा - जैसे बहु धरेइ - बहुत धारण करता है बहु-विहं धरेइ अनेक प्रकार से धारण करता है पोराणं - पुरानी बात को धरेइ-धारण करता है दुद्धरं धरेइ-भंगादि दुर्धर को धारण
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org