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चतुर्थी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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तो क्या करना चाहिए? उत्तर में कहा जाता है कि यह अपने अधिकार की बात नहीं, यह सब कर्माधीन है । छद्मस्थ के लिए ही प्रथम व्यवहार पक्ष है ।।
सूत्रों के पठन से निश्यच होता है कि भगवान् केशीकुमार श्रम तथा अनाथी मुनि महाराज के शरीर-सौन्दर्य को देखकर महाराजा प्रदेशी तथा महाराजा श्रेणिका धर्म में तल्लीन हो गए थे।
शरीर-सम्पत् के अनन्तर सूत्रकार अब वचन-सम्पत् का विषय वर्णन करते है:
से किं तं वयण-संपया? वयण-संपया चउ-विहा पण्णत्ता, तं जहा-आदेय-वयणे यावि भवइ, महुर-वयणे यावि भवइ, अणिस्सिय-वयणे यावि भवइ, असंदिद्ध-वयणे यावि भवइ । से तं वयण-संपया ।।४।।
अथ का सा वचन-सम्पत् ? वचन-सम्पच्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-आदेय-वचनश्चापि भवति, मधुर-वचनश्चापि भवति, अनिश्रित-वचनश्चापि भवति, असंदिग्ध-वचनश्चापि भवति । सैषा वचन-सम्पत् ।।४।।
पदार्थान्वयः-से किं तं-कौन सी वह वयण-वचन संपया-सम्पदा है ? वयण-वचन सम्पया-सम्पदा चउ-विहा-चार प्रकार की पण्णत्ता-प्रतिपादन की है । तं जहा-जैसे जो आदेय-वयणे यावि भवइ-आदेय-वचन धारण करने वाला है जो महुर-मधुर वयणे-वचन बोलने वाला भवइ-है अणिस्सिय-जो निश्राय (प्रतिबंध) रहित वयणे-वचन बोलने वाला भवइ-है । 'अपि' और 'च' शब्द उत्तरोत्तर अपेक्षा या समुच्चय अर्थ में प्रयुक्त हुए जान लेने चाहिएँ । से तं-यही वयण-वचन सम्पया सम्पदा है।
मूलार्थ-वचन-सम्पत् किसे कहते हैं ? वचन-सम्पत् चार प्रकार की प्रतिपादन की गई है, जैसे-आदेय-वचन धारण करने वाला, मधुर-वचन बोलने वाला, निश्राय-रहित वचन उच्चारण करने वाला और सन्देह-रहित बोलने वाला । यही वचन-सम्पत् है ।
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