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द्वितीया दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
यहां यह सूत्र भी दशम सूत्र का अपवाद रूप है । तात्पर्य यह है कि एक वर्ष के भीतर नौ से अधिक माया-स्थानों के सेवन से शबल दोष होता है । अथवा इस स्थान पर यह कथन अनन्तानुबन्धिनी, अप्रत्याख्यायिनी अथवा प्रत्याख्यायिनी माया के विषय में प्रतीत होता है । ___ अब सूत्रकार पुनः जल-काय जीवों की रक्षा के विषय में कहते हैं:
आउट्टियाए सीतोदय-वियड-वग्घारिय-हत्येण वा मत्तेण वा दविण्ण वा भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहित्ता भुंजमाणे सबले ।। २१ ।। ___ आकुट्या शीतो दकविकट-व्यापारितेन हस्तेन वा अमत्रेण (पात्रेण) वा दा वा भाजनेन क अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिम वा प्रतिगृह्य भुजानः शबलः ।। २१ ।।
___ पदार्थान्वयः-आउट्टियाए-जानकर वियड-सचित्त सीतोदय-शीतोदक वग्धारिय-लिप्त हुए हत्थेण-हाथ से वा–अथवा मत्तेण-पात्र से वा-अथवा दविण्ण-दर्वी (की) से वा-अथवा भायणेण-भाजन से असणं वा-अन्न अथवा पानं-पानी वा-अथवा खाइम-खाद्य पदार्थ वा-अथवा साइम-स्वादिष्ट पदार्थ वा अन्य साधु के ग्रहण करने योग्य पदार्थ पडिगाहित्ता-लेकर भुंजमाणे-भोगते हुए सबले-शबल दोष लगता है ।
मूलार्थ-जानकर शीतोदक से व्याप्त हुए हाथ से, पात्र से, दवीं से, भोजन से अशन, पानी, खाद्य पदार्थ या स्वादिम पदार्थ लेकर भोगने से शबल-दोष लगता है ।
__ टीका-इस सूत्र में जल-काय जीवों की रक्षा के विषय में पुनः प्रतिपादन किया गया है । जैसे-कोई साधु किसी गृहस्थी के घर भिक्षा के लिए गया; यदि उस समय वह (गृहस्थी) स्नानादि क्रियाएं कर रहा हो और उसके हस्तादि अवयव सचित्त जल से न केवल लिप्त हों बल्कि उनसे जल-बिन्दु भी गिर रहे हों तो साधु को उचित है कि उस समय उसके हाथों से, पात्र से, दर्वी से तथा भाजन से अशन, पानी, खादिम और स्वादिम पदार्थों को ग्रहण न करे, क्योंकि इससे जल-काय जीवों की विराधना के कारण शबल दोष होता है ।
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