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श६२
दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
तृतीय दशा
मूलार्थ-हे आयुष्मन् शिष्य ! मैंने सुना है उस भगवान् ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है । इस जिन-शासन में स्थविर भगवन्तों ने तेतीस आशातनाएं प्रतिपादन की हैं । शिष्य ने प्रश्न किया कि कौन सी तेतीस आशातनाएं स्थविर भगवन्तों ने प्रतिपादन की हैं ? गुरू उत्तर देते हैं कि वक्ष्यमाणा तेतीस आशातनाएं स्थविर भगवन्तों ने प्रतिपादन की हैं । जैसे:
टीका-पूर्वोक्त दो दशाओं के समान इस दशा का प्रारम्भ भी गुरू-शिष्य की प्रश्नोत्तर शैली से किया गया है जिससे आप्त-वाक्य-प्रामाणिकता और जिज्ञासुओं का बोध सहज ही में सम्पन्न हो जाते हैं ।
यहां पर यह बता देना भी उचित है कि गणधरों को भी स्थविर भगवान् कहते हैं, अथवा चतुर्दश पूर्वधारी से लेकर दश पूर्वधारी तक के मुनि भी स्थविर भगवान् या श्रुत-केवली कहे जाते हैं । इन सब के उपयोग-पूर्वक कथन किये हुए वाक्य भी प्रमाण कोटि में आ जाते हैं।
अब सूत्रकार आशातनाओं का विस्तृत वर्णन करते है:
सेहे रायणियस्स पुरओ गंता भवइ आसायणा सेहस्स ।।१।। सेहे रायणियस्स सपक्खं गंता भवइ आसायणा सेहस्स ।।२।। सेहे रायणियस्स आसन्नं गंता भवइ आसायणा सेहस्स ।।३।। सेहे रायणियस्स पुरओ चिट्टित्ता भवइ आसायणा सेहस्स ।।४।। सेहे रायणियस्स सपक्खं चिट्टित्ता भवइ आसायणा सेहस्स ।।५।। सेहे रायणियस्स आसन्नं चिट्टित्ता भवइ आसायणा सेहस्स ।।६।। सेहे रायणियस्स पुरओ निसीइत्ता भवइ आसायणा सेहस्स ।।७।। सेहे रायणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवइ आसायणा सेहस्स ।।८।। सेहे रायणियस्स आसन्नं निसीइत्ता भवइ आसायणा सेहस्स ।।६।।
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