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तृतीय दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
के बढ़ने से ज्ञान, दर्शन और चरित्र सम्बन्धी आशातनाओं का होना अनिवार्य हैं।
इनके अतिरिक्त द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, श्रुत, देव, देवी, श्रुत-देव, श्रावक श्राविका, प्राणी, भूत, जीव, सत्व और अरिहन्तादि पंच परमेष्ठी आदि की आशातनाओं के अनेक कारण वर्णन किये गए हैं, उनको उपलक्षण से जान लेना चाहिए। जिस व्यक्ति के ज्ञानादि पहिले से ही शिथिल हैं वह उनकी आराधना किस प्रकार कर सकता है । अतः आशातना दूर करके ज्ञान आदि की भली प्रकार आराधना करनी चाहिए ।
अब सूत्रकार मूल सूत्र में इस विषय का वर्णन करते हुए कहते हैं:
सुयं मे आउसं तेणं भगवआ एवमक्खायं; इह खलु थेरेहिं भगवंतेहि तेतीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ, कयरे खलु ताओ भगवंतेहिं तेतीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ, इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेतीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ । तं जहा:
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श्रुतं मया, आयुष्मन् तेन भगवतैवमाख्यातं इह खलु स्थविरैर्भगवद्भिस्त्रयस्त्रिंशदाशातनाः प्रज्ञप्ताः । कतराः खलु ताः स्थविरैर्भगवद्भिस्त्रयस्त्रिंशदाशातनाः प्रज्ञप्ताः । इमा खलु ताः स्थविरैर्भगवद्भिस्त्रयस्त्रिंशदाशातनाः प्रज्ञप्ताः । तद्यथाः
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पदार्थान्वयः-आउसं हे आयुष्मन् शिष्य ! मे मैंने सुयं सुना है तेणं - उस भगवआ - भगवान् ने एवं - इस प्रकार अक्खायं प्रतिपादन किया है । इह - इस जिन - शासन में थेरेहिं - स्थविर भगवंतेहिं भगवन्तों ने तेतीसं तेतीस आसायणाओ - आशातनाएं पण्णत्ताओ - प्रतिपादन की हैं। शिष्य पूछता है कयरे - कौनसी खलु - निश्चय से ताओ - वे थेरेहिं - स्थविर भगवंतेहिं भगवन्तों ने तेतीसं तेतीस आसायणाओ - आशातनाएं पण्णत्ताओ - प्रतिपादन की हैं ? गुरू उत्तर देते हैं इमाओ - ये खलु - निश्चय से ताओ-वे थेरेहिं- स्थविर भगवंतेहिं भगवन्तों ने तेतीसं तेतीस आसायणाओ - आशातनाएं पण्णत्ताओ - प्रतिपादन की हैं। तं जहा - जैसे:
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