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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
झंझ-करे ।। १७ ।।
झञ्झा-करः ।। १७ ।।
पदार्थान्वयः - झंझकरे- फूट उत्पन्न करने वाले वचनों का प्रयोग करने वाला । मूलार्थ -1 - परस्पर भेदभाव उत्पन्न करने वाले वचनों का प्रयोग करने
वाला ।
टीका- गणों में परस्पर भेद उत्पन्न करने वाले तथा उनके चित्त में दुःख पैदा करने वाले वचनों का प्रयोग असमाधि पैदा करने वाला होता है कारण स्पष्ट है- जब गण में भेद उत्पन्न हो जाएगा तो समाधि भङ्ग होकर अवश्य असमाधि की उत्पत्ति होगी जिसका परिणाम आत्म-विराधना और संयम - विराधना होगा ।
प्रथम दशा
जब किसी व्यक्ति को दुःख होता है तो उसके चित्त में खेद तथा क्रोध के अतिरिक्त अन्य भाव प्रायः उत्पन्न नहीं होते; और ये दोनों समाधि को समूल नष्ट करने में पूर्ण समर्थ हैं; अतः सिद्ध हुआ कि भेद भाव उत्पन्न करने वाले वचनों का प्रयो न करना चाहिए । आत्म-समाधि के इच्छुक व्यक्तियों को तो ऐसे कृत्यों से सर्वथा पृथक् रहने में ही लाभ है ।
"झञ्झा" शब्द का असभ्यता से परस्पर विवाद करने में भी प्रयोग होता है । समाधि - इच्छुक व्यक्तियों को ऐसा विवाद कभी नहीं करना चाहिये ।
सार यह निकला कि परस्पर भेदोत्पादक शब्दों का कभी प्रयोग न करे, क्योंकि इससे असमाधि का प्राप्त होना अनिवार्य है ।
अब सूत्रकार कलह - विषय का वर्णन करते हैं:
कलहइ-करे ।। १८ ।।
कलह-करः ।। १८ ।।
पदार्थान्वयः - कलहकरे - कलह करने वाला । मूलार्थ - कलेश करने वाला ।
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