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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
द्वितीया दशा
नाम से प्रकाशित कर दिया हो ? समाधान में कहा जाता है कि भगवान् के कथन में अलौकिक शक्ति होती है, यह युक्ति-संगत और बुद्धि-ग्राह्य होता है और इतना ही नहीं किन्तु दोनों लोकों के लिए हितकारी भी होता है । प्रस्तुत दशा में ये सब गुण मिलते हैं अतः इस में कोई सन्देह नहीं कि यह कथन भगवान् का ही है । अपना शुभ चाहने वालों को इसका अध्ययन आदर और श्रद्धा से करना चाहिए ।
अब सूत्रकार प्रस्तुत विषय का वर्णन करते हुये प्रथम शबल दोष का विषय वर्णन करते हैं:
हत्थ-कम्मं करेमाणे सबले ।। १ ।। हस्त-कर्म-कुर्वन् शबलः ।। १ ।।
पदार्थान्वयः-हत्थकम्म-हस्त-क्रिया करेमाणे-करता हुआ सबले-शबल दोष युक्त होता है ।
मूलार्थ-हस्त-क्रिया करने से शबल दोष लगता है । - टीका-इस सूत्र में इस बात का प्रकाश किया गया है कि संसार में ऐसे अनभिज्ञ लोग भी हैं जो अनेक ऐसे कुकर्म कर बैठते हैं जिनसे सहज में ही आत्म-विराधना तथा संयम-विराधना उत्पन्न हो जाती हैं |
संसार में ऐसे २ नीच कर्म हैं जिनका सम्पूर्ण फल इस सारे जीवन में भी नहीं भुगता जा सकता, अतः परलोक में भी उनका परिणाम भोगना पड़ता है । जिन कर्मों के प्रभाव से मनुष्य जन्म ही व्यर्थ हो जाता है और आत्मा को सुगति के स्थान पर दुगति भोगनी पड़ती है अर्थात् उसका सम्पूर्ण जीवन दुःख-मय हो जाता है । इस सूत्र में कुछ ऐसे ही कर्मों का वर्णन किया गया है । जैसे मोहनीय कर्म के उदय से किसी जीव को वेद विकार हो गया, उसके वश में आकर पुरुष हस्त-क्रिया द्वारा वीर्यपात और स्त्री किसी काष्ठादि द्वारा कुचेष्टा करे तो अवश्य ही निर्बल हो रोगों के घर बन जायेंगे । लिखा भी है:
कम्पः स्वेदः श्रमो मूर्छा भ्रमग्लानिर्बल-क्षयः । राजयक्ष्मादि रोगाश्च भवेयुमैथुनोत्थिताः ।।
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