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द्वितीया दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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अब सूत्रकार प्राणातिपात के विषय में कहते हैं :आउट्टियाए पाणाइवायं करेमाणे सबले ।। १२ ।। आकुट्या प्राणातिपातं कुर्वन् शबलः ।। १२ ।।
पदार्थान्वयः-आउट्टियाए-जानकर पाणाइवायं-प्राणातिपात (जीव हिंसा) करेमाणे-करते हुए सबले-शबल दोष लगता है । __ मूलार्थ-जान बूझ कर जीव-हिंसा करने से शबल दोष होता है ।
टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि किस तरह की जीव-हिंसा से शबल दोष होता है । मायावी व्यक्तियों से जीव-हिंसा होना अनिवार्य है । इसी बात को ध्यान में रखते हुए सूत्रकार कहते हैं कि जानकर जीव-हिंसा करने से ही शबल दोष होता है ।
यदि साधु किसी ऐसे गृहस्थी से, जिसके हाथ आदि अङ्ग सचित्त (जीव-युक्त) रज से लिप्त या सचित्त जल से स्निग्ध हों या जो अग्नि कार्य से, व्यजन (पङख) आदि से तथा काष्ठादि छेदन से द्वीन्द्रियादि जीवों की हिंसा कर रहा हो, भिक्षा ले तो शबल दोष का भागी होगा । इसके अतिरिक्त जो साधु स्वयं प्राणातिपात में लगा हुआ हो तथा मन से अथवा वाणी से किसी से द्वेष करे या किसी को द्वेष सूचक वचन कहे, उसे भी शबल दोष लगता है ।
यह स्पष्ट ही है कि यदि अनजान में किसी से प्राणातिपात हो जाय तो शबल दोष नहीं होता किन्तु जान कर करने से ही होता है ।
सिद्ध यह हुआ कि समाधि-इच्छुक व्यक्ति को प्राणातिपात नहीं करना चाहिए, नाहीं किसी से द्वेष-भाव रखना चाहिए ।
सूत्रकार प्राणातिपात के अनन्तर अब मृषा-वाद के विषय में कहते हैं:आउट्टियाए मुसा-वायं वदमाणे सबले ।। १३ ।। आकुट्या मृषा-वादं वदन् शबलः ।। १३ ।।
पदार्थान्वयः-आउट्टियाए-जानकर मुसा-वायं-मृषा-वाद वदमाणे-बोलते हुए ! सबले-शबल दोष लगता है ।
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