________________
५४
हरित भोयणं- हरित - काय का भोजन वा समुच्चय अर्थ में है भुंजमाणे - भोगते हुए सबले - शबल दोष लगता है ।
दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
मूलार्थ - जानकर मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वक्, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज और हरित के भोजन करने से शबल दोष होता है ।
टीका - इस सूत्र में स्पष्ट किया गया है कि साधु को सचित्त वनस्पति का आहार कदापि न करना चाहिए । यदि मुनि इस बात का विवेक न करेगा तो उसका प्रथम महा-व्रत शबल दोष युक्त हो जाएगा ।
१- मूल
२- कंद
३- स्कन्ध
४- त्वक्
इस सूत्र में "भुंजमाणे" पाठ 'नयों' की अपेक्षा से ही लिया गया है । "कडेमाणे कडे" की तरह अतिक्रम, व्यतिक्रम और अतिचार पर्यन्त ही शबल दोष हो सकता है, यदि अनाचार का ही सेवन किया जाय तो उसे शबल दोष नहीं कहा जाएगा । अतः सिद्ध हुआ कि वनस्पति - विषयक शबल दोष से सदा बचा रहे ।
मूल सूत्र में वनस्पति के निम्नलिखित दश भेद वर्णन किये गये हैं:
५- प्रवाल
६- पत्र
७- पुष्पः
८ - फल
६ - बीज
Jain Education International
द्वितीया दशा
अल्लक, मूलक सट्टादि ।
उत्पल, विदारी कन्दादि ।
भूमि के ऊपर प्रस्फुटित शाखाएं ।
छाल ।
नवीन पत्ते, कुंपल (अंकुर) आदि ।
• ताम्बूल, वल्ली पत्रादि ।
मधूक पुष्पादि ।
कर्कटी, त्रपु, आम्रादि ।
शाल्यादि ।
१० - हरित:
दूर्वादि ।
इन में से किसी भी सचित्त वनस्पति का सेवन नहीं करना चाहिए । सचित्त वनस्पति की तरह सचित्त मृत्तिका और जलादि के विषय में भी जानना चाहिए ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org