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प्रथम दशा
की प्राप्ति होती है :―
सद्द करे ।। १६ ।।
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
शब्द- करः ।। १६ ।।
पदार्थान्वयः - सद्दकरे - रात्रि तथा दिन में प्रमाण से अधिक शब्द करना ।
मूलार्थ -
- प्रमाण से अधिक शब्द करने वाला |
टीका - इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि समाधि - युक्त व्यक्ति को शब्द करने के पहिले द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव का ज्ञान कर लेना चाहिए, क्योंकि असमय का शब्दोच्चारण अवश्य ही असमाधि का कारण बन जाता है । अतः शब्दोच्चारण के लिए समय - ज्ञान अवश्य होना चाहिए । एक गहन वसति में रात्रि के समय ऊंचे स्वर में शब्दोच्चारण अनुचित है, क्योंकि ऐसा करने से बहुत से व्यक्तियों को असमाधि हो जाती है । रात्रि के एक प्रहर के बाद यदि ऊंचा शब्द किया जाए तो लोगों को दुःख होगा । यह समय प्रायः लोगों के शयन का होता है । इसी प्रकार मध्य-रात्रि तथा पश्चिम - रात्रि और रात्रि की तरह दिन के विषय में भी जानना चाहिए । जैसे - यदि कभी ऐसे स्थान में ठहरना पड़ा जहां का अधिपति रुग्ण है, किन्तु वैद्यों के किसी प्रयोग से उसको दिन में निद्रा आ गई; वैद्यलोग ऊंचे स्वर से वार्तालाप करना निषेध कर गये, अब यदि कोई साधु वहां ऊंचे स्वर से शब्दोच्चारण करने लगे तो अवश्य ही असमाधि - स्थान की प्राप्ति करेगा । इसी प्रकार सम्मधि- स्थान, ध्यान-स्थान और धर्मोपदेश-स्थान पर भी असामयिक शब्दोच्चारण करना आत्म - विराधना और संयम - विराधना का कारण हो सकता है ।
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समाधि - इच्छुक व्यक्ति को गृहस्थों की तरह असभ्य तथा अशिष्ट भाषा का प्रयोग न करना चाहिए ।
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सिद्ध यह हुआ कि सर्व-प्रथम शब्द ज्ञान की आवश्यकता है । तदनन्तर शब्द-प्रयोग के लिए उचित समय के ज्ञान की भी अत्यन्त आवश्यकता है, जिससे असमाधि उत्पन्न न हो सके ।
अब सूत्रकार अगले सूत्र में कहते हैं कि ऐसे शब्दों का प्रयोग न करना चाहिए जिससे साम्य-भाव का नाश हो ।
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