________________
है
१०
दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
प्रथम दशा
किये हैं। शिष्य प्रश्न करता है-कयरे-कौन से, खलु-निश्चय से, ते-वे, थेरेहिं-स्थविर, भगवंतेहिं-भगवन्तों ने, बीस-बीस, असमाहि-असमाधि के, ठाणा-स्थान, पण्णत्ता-प्रतिपादन किये हैं । गुरु उत्तर देते हैं-इमे-ये, खलु-निश्चय से, ते-वे, थेरेहि-स्थविर, भगवंतेहिं-भगवन्तों ने, बीस-बीस, असमाहि-असमाधि के, ठाणा-स्थान, पण्णत्ता–प्रतिपादन किए हैं, तं जहा-जैसे:
मूलार्थ-इस लोक में स्थविर भगवन्तों ने बीस असमाधि के स्थान प्रतिपादन किये हैं | शिष्य ने प्रश्न किया-कौन से वे स्थविर भगवन्तों ने बीस असमाधि के स्थान प्रतिपादन किये हैं ? गुरु ने उत्तर में कहा कि-ये स्थविर भगवन्तों ने बीस असमाधि के स्थान प्रतिपादन किये हैं । जैसे:
__टीका-इस सूत्र में पहली बात यह दिखाई गई कि पहली ‘दशा' में किस विषय का वर्णन किया गया है, दूसरी यह कि उस विषय को किस प्रकार स्फुट करना चाहिए । सर्व प्रथम गुरु ने इस बात का वर्णन किया है कि इस लोक व जैन-शासन में स्थविर भगवन्तों ने बीस असमाधि के स्थान प्रतिपादन किये हैं । शिष्य ने प्रश्न किया कि कौन से बीस असमाधि के स्थान स्थविर भगवन्तों ने प्रतिपादन किये हैं ? गुरु ने उत्तर दिया कि आगे उन्हीं का वर्णन किया गया है ।
यह प्रतिपादन-शैली जिज्ञासुओं के बोध के लिये अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि इस प्रकार की रोचक शैली से प्रत्येक जिज्ञासु को शीघ्र ही विषय का बोध हो जाता है ।
अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि 'समाधि' और 'असमाधि' के क्या लक्षण हैं ? उत्तर में कहा जाता है-'समाधानं समाधिश्चेतसः स्वास्थ्यं मोक्षमार्गेऽ-वस्थानमित्यर्थः । चित्त का स्वास्थ्य-भाव और मोक्ष मार्ग की ओर लगना ही समाधि कहलाता है; अर्थात् जिस कार्य के करने से चित्त को शान्ति-लाभ हो तथा वह मोक्ष की ओर लगे उस (मोक्ष) की प्राप्ति कर सके उसको समाधि कहते हैं । जो इसके विपरीत हो उसका नाम 'असमाधि-स्थान' है । जिन कारणों से 'असमाधि' उत्पन्न होती है उनको ‘असमाधि-स्थान' कहते हैं ।
अब यह प्रश्न होता है कि असमाधि के मुख्य भेद कितने और कौन-२ हैं ? उत्तर यह है कि यद्यपि 'असमाधि' के अनेक भेद हैं तथापि प्रधान भेद दो ही माने गये हैं-१-'द्रव्य-असमाधि' और-२-'भाव-असमाधि' ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org