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. इस समय आपको अचानक ही दमा के रोग ने घेर लिया । जिसके कारण बहुत दर तक विहार करने में बाधा उत्पन्न होने लगी । अतः आपने १६६१ का चातर्मास फरीदकोट शहर में किया । वहां से विहार कर आपने १६६२ का चातुर्मास पटियाला और १६६३ का अम्बाला शहर में किया । १६६४ का चातुर्मास आपने रोपड़ शहर में किया । इस चातुर्मास में जैनेतर लोगों को बहुत सा धार्मिक लाभ हुआ । नगर की जनता उनकी सेवा में दत्त-चित्त होकर धर्मोपार्जन करने लगी । दुर्भाग्य से श्वास रोग का कई प्रकार से प्रतीकार किये जाने पर भी वह शान्त न हो सका । यह देखकर लोगों ने उनसे स्थिरवास की प्रार्थना की । किन्तु उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया और आत्मबल से
वेचरते रहे | कई बार जब आपको मार्ग में श्वास का प्रबल दौरा हो गया तब आपकी शिष्य-मण्डली ने वस्त्र की डोली बनाकर नगर में प्रवेश किया । बहुत समय तक आप ऐसी ही अवस्था में रहे । १६६५ का चातुर्मास आपने खरड शहर में किया । इस चातुर्मास में भी जैनेतर लोगों को अत्यधिक धर्म-लाभ हुआ । इसके अनन्तर १६६६ का फरीदकोट और १६६७ का कसूर में लाला परमानन्द बी.ए., एल.एल.बी. के स्थान पर किया ।
संवत् १६६८ के चार्तुमास के लिए जब आप अम्बाला की ओर पधार रहे थे उस समय आपके साथ एक दैवी घटना हुई, जो सर्वथा विस्मय से भरी हुई है | जब आपने राजपुरा से अम्बाला के लिए विहार किया तो आपका विचार था कि मुगल की सराय में ठहरेंगे । किन्तु वहां जाने पर पता लगा कि साधु-वृत्ति के अनुसार वहां तक पानी नहीं पहुंचता है । अतः राजकीय सड़क पर एक पुल के पास एक अत्यन्त विशाल वृक्ष के नीचे जहां पानी पहुंच सकता था अपने सह-चारी मुनियों के साथ विराजमान हो गये । वहां अपने पानी के पात्र तथा अन्य उपकरण खोलकर रख दिये । वस्त्र आदि अन्य उपकरण जो पसीने से गीले हो गये थे उनको भी सुखाने के लिए फैला दिया । आपका विचार था कि थोडा सा दिन रहते ही सराय में पहुंच जाएंगे | इसी समय अम्बाला की श्रावक-मण्डली आपकी सेवा में उपस्थित हुई । आपने उनको अपना सराय में पहुंचने का विचार सुना दिया और वे लोग मांगलिक पाठ सुनकर वहां से चल पड़े ।
उसी समय अकस्मात् एक पुरुष श्री महाराज के पास आकर खड़ा हो गया और साधुओं के उपकरण की ओर टक-टकी बांध कर देखने लगा । जब श्री महाराज ने पूछा कि आप यह क्या देख रहे हैं ? ये सब साधुओं के उपकरण हैं, जो सदैव उनको साथ रखने पड़ते हैं । तब उस पुरुष का और श्री जी का निम्नलिखित वार्तालाप हुआ:
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