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स्थानाङ्गसूत्रम्
ऊपर श्रेणी चढ़ने वाले जीव के संयम को विशुद्ध्यमान और उपशमश्रेणी करके नीचे गिरने वाले के संयम को संक्लिश्यमान कहते हैं। उनके भी प्रथम और अप्रथम तथा चरम और अचरम को उक्त प्रकार से जानना चाहिए।
सयोगि-अयोगि केवली के प्रथम-अप्रथम एवं चरम-अचरम समयों की भावना भी इसी प्रकार करनी चाहिए। जीव-निकाय-पद
१२३– दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा सुहुमा चेव, बायरा चेव। १२४– दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा सुहुमा चेव, बायरा चेव। १२५ - दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—सुहुमा चेव, बायरा चेव। १२६- दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—सुहुमा चेव, बायरा चेव। १२७ - दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा सुहुमा चेव, बायरा चेव। १२८– दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा—पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। १२९- दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा पजत्तगा चेव, अपजत्तगा चेव। १३०– दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—पजत्तगा चेव, अपजत्तगा चेव। १३१- दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा–पजत्तगा चेव, अपजत्तगा चेव। १३२ - दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा–पजत्तगा चेव, अपजत्तगा चेव। १३३– दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा—परिणया चेव, अपरिणया चेव। १३४ - दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—परिणया चेव, अपरिणया चेव। १३५- दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहापरिणया चेव, अपरिणया चेव। १३६- दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—परिणया चेव, अपरिणया चेव। १३७ - दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा- परिणया चेव, अपरिणया चेव।
पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं— सूक्ष्म और बादर (१२३)। अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं सूक्ष्म और बादर (१२४) । तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—सूक्ष्म और बादर (१२५) । वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—सूक्ष्म और बादर (१२६) । वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—सूक्ष्म और बादर (१२७)।
पुनः पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—पर्याप्तक और अपर्याप्तक (१२८) । अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—पर्याप्तक और अपर्याप्तक (१२९) । तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—पर्याप्तक
और अपर्याप्तक (१३०)। वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—पर्याप्तक और अपर्याप्तक (१३१)। वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—पर्याप्तक और अपर्याप्तक (१३२)।
पुनः पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—परिणत (बाह्य शस्त्रादि कारणों से जो अन्य रूप हो गया—अचित्त हो गया है) और अपरिणत (जो ज्यों का त्यों सचित्त है) (१३३)। अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—परिणत और अपरिणत (१३४)। तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—परिणत और अपरिणत (१३५)। वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—परिणत और अपरिणत (१३६) । वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—परिणत और अपरिणत (१३७)।