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स्थानाडसूत्रम्
प्रश्न- भदन्त! तथारूप श्रमण-माहन की पर्युपासना करने का क्या फल है ? उत्तर- आयुष्मन् ! पर्युपासना का फल धर्म-श्रवण है। प्रश्न- भदन्त ! धर्म-श्रवण का क्या फल है ? उत्तर- आयुष्मन्! धर्म-श्रवण का फल ज्ञान-प्राप्ति है। प्रश्न- भदन्त! ज्ञान-प्राप्ति का क्या फल है ? उत्तर- आयुष्मन् ! ज्ञान प्राप्ति का फल विज्ञान (हेय-उपादेय के विवेक) की प्राप्ति है। [प्रश्न— भदन्त! विज्ञान-प्राप्ति का क्या फल है ? उत्तर-आयुष्मन् ! विज्ञान-प्राप्ति का फल प्रत्याख्यान (पाप का त्याग करना) है। प्रश्न-भदन्त! प्रत्याख्यान का क्या फल है ? उत्तर- आयुष्मन् ! प्रत्याख्यान का फल संयम है। प्रश्न- भदन्त! संयम का क्या फल है ? उत्तर- आयुष्मन् ! संयम-धारण का फल अनास्रव (कर्मों के आस्रव का निरोध) है। प्रश्न- भदन्त! अनास्रव का क्या फल है ? उत्तर- आयुष्मन् ! अनास्रव का फल तप है। प्रश्न- भदन्त! तप का क्या फल है ? उत्तर- आयुष्मन् ! तप का फल व्यवदान (कर्म-निर्जरा) है। प्रश्न- भदन्त ! व्यवदान का क्या फल है ?
उत्तर- आयुष्मन्! व्यवदान का फल अक्रिया अर्थात् मन-वचन-काय की हलन-चलन रूप क्रिया या प्रवृत्ति का पूर्ण निरोध है।
प्रश्न- भदन्त! अक्रिया का क्या फल है ? उत्तर- आयुष्मन् ! अक्रिया का फल निर्वाण है। प्रश्न— भदन्त ! निर्वाण का क्या फल है ?
उत्तर- आयुष्मन् श्रमण! निर्वाण का फल सिद्धगति को प्राप्त कर संसार-परिभ्रमण (जन्म-मरण) का अन्त करना है (४१८)।
॥ तृतीय उद्देश समाप्त ॥ .