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दशम स्थान
७.
अनन्तर - पर्याप्त नारक प्रथम समय के पर्याप्त । परम्पर-पर्याप्त नारक — दो आदि समयों के पर्याप्त ।
८.
९.
चरम - नारक — नरकगति में अन्तिम बार उत्पन्न होने वाले ।
१०. अचरम - नारक— जो आगे भी नरकगति में उत्पन्न होंगे।
इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डकों में जीवों के दश-दश प्रकार जानना चाहिए (१२३) ।
नरक - सूत्र
१२४ - चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए दस णिरयावाससतसहस्सा पण्णत्ता । चौथी पंकप्रभा पृथिवी में दश लाख नारकावास कहे गये हैं (१२४) ।
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स्थिति - सूत्र
१२५
रयणप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं दसवाससहस्साइं ठिती पण्णत्ता । रत्नप्रभा पृथिवी में नारकों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है (१२५) ।
१२६ - उत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं णेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता । चौथी पंकप्रभा पृथिवी में नारकों की उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम कही गई है (१२६) । १२७ – पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता । पांचवीं धूमप्रभा पृथिवी में नारकों की जघन्य स्थिति दश सागरोपम की कही गई है (१२७) ।
१२८ - असुरकुमाराणं जहण्णेणं दस वाससहस्साइं ठिती पण्णत्ता । एवं जाव थणियकुमाराणं । असुरकुमार देवों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है।
इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देवों की जघन्य आयु दश हजारवर्ष की कही गई है (१२८) ।
१२९ – बायरवणस्सतिकाइयाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं ठिती पण्णत्ता ।
बादर वनस्पतिकायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है (१२९) । १३० – वाणमंतराणं देवाणं जहणणेणं दस वाससहस्साइं ठिती पण्णत्ता । वानव्यन्तर देवों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है ( १३० ) । १३१ - बंभलोगे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता । ब्रह्मलोककल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम की कही गई है ( १३१) । १३२ – लंतए कप्पे देवाणं जहण्णेणं दस सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता । लान्तक कल्प में देवों की जघन्य स्थिति दश सागरोपम की कही गई है (१३२) ।