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दशम स्थान
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९. दशार्णभद्र, १०. अतिमुक्त (११४)।
११५- आयारदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-वीसं असमाहिट्ठाणा, एगवीसं सबला, तेत्तीसं आसायणाओ, अट्ठविहा गणिसंपया, दस चित्तसमाहिट्ठाणा, एगारस उवासगपडिमाओ, बारस भिक्खुपडिमाओ, पज्जोसवणाकप्पो, तीसं मोहणिजट्ठाणा, आजाइट्ठाणं।
आचारदशा (दशाश्रुतस्कन्ध) के दश अध्ययन कहे गये हैं, जैसे१. बीस असमाधिस्थान, २. इक्कीस शबलदोष, ३. तेतीस आशातना, ४. अष्टविध गणिसम्पदा, ५: दश चित्तसमाधिस्थान, ६. ग्यारह उपासकप्रतिमा, ७. बारह भिक्षुप्रतिमा, ८. पर्युषणाकल्प, ९. तीस मोहनीयस्थान, १०. आजातिस्थान (११५)।
११६- पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा—उवमा, संखा, इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासिआइं, खोमगपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई।
प्रश्नव्याकरणदशा के दश अध्ययन कहे गये हैं, जैसे१. उपमा, २. संख्या, ३. ऋषिभासित, ४. आचार्यभाषित, ५. महावीरभाषित, ६. क्षौमकप्रश्न, ७. कोमलप्रश्न, ८. आदर्शप्रश्न, ९. अंगुष्ठप्रश्न, १०. बाहुप्रश्न (११६)।
विवेचन— प्रस्तुत सूत्र में प्रश्नव्याकरण के जो दश अध्ययन कहे गये हैं उनका वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण से कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। प्रतीत होता है कि मूल प्रश्नव्याकरण में नाना विद्याओं और मंत्रों का निरूपण था, अतएव उसका किसी समय विच्छेद हो गया और उसकी स्थानपूर्ति के लिए नवीन प्रश्नव्याकरण की रचना की गई, जिसमें पांच आस्रवों और पांच संवरों का विस्तृत वर्णन है। ११७-बंधदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
बंधे य मोक्खे य देवड्डि, दसारमंडलेवि य । आयरियविप्पडिवत्ती, उवज्झायविप्पडिवत्ती, भावणा, विमुत्ती, सातो, कम्मे। बन्धदशा के दश अध्ययन कहे गये हैं, जैसे१. बन्ध, २. मोक्ष, ३. देवर्धि, ४. दशारमण्डल, ५. आचार्य-विप्रतिपत्ति, ६. उपाध्याय-विप्रतिपत्ति, ७. भावना, ८. विमुक्ति, ९. सात, १०. कर्म (११७)। . .
११८- दोगेद्धिदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा—वाए, विवाए, उववाते, सुखेत्ते, कसिणे, बायालीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा, बावत्तरि सव्वसुमिणा।
हारे रामगुत्ते य, एमेते दस आहिता। द्विगृद्धिदशा के दश अध्ययन कहे गये हैं, जैसे१. वाद, २. विवाद, ३. उपपात, ४. सुक्षेत्र, ५. कृत्स्न, ६. बयालीस स्वप्न, ७. तीस महास्वप्न, ८. बहत्तर सर्वस्वप्न, ९. हार, १०. रामगुप्त (११८)।