Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 785
________________ ७१८ ११९ – दीहदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा चंदे सूरे य सुक्के य, सिरिदेवी पभावती । दीवसमुद्दोववत्ती बहूपुत्ती मंदरेति य ॥ थेरे संभूतिविजय, थेरे पम्ह ऊसासणीसासे ॥ १ ॥ स्थानाङ्गसूत्रम् दीर्घदशा के दश अध्ययन कहे गये हैं, जैसे १. चन्द्र, २. सूर्य, ३. शुक्र, ४. श्रीदेवी, ५. प्रभावती, ६. द्वीप - समुद्रोपपत्ति, ७. बहुपुत्री मन्दरा, ८. स्थविर सम्भूतविजय, ९. स्थविर पक्ष्म, १०. उच्छ्वास - नि:श्वास (११९) । १२० – संखेवियदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा — खुड्डिया विमाणपविभत्ती, महल्लिया विमाणपविभत्ती, अंगचूलिया, वग्गचूलिया, विवाहचूलिया, अरुणोववाते, वरुणोववाते, गरुलोववाते, वेलंधरोववाते, वेसमणोववाते । कालचक्र-सूत्र संक्षेपिकदशा के दश अध्ययन कहे गये हैं, जैसे १. क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति, २. महतीविमानप्रविभक्ति, ३. अंगचूलिका ( आचार आदि अंगों की चूलिका), ४. वर्गचूलिका (अन्तकृत्दशा की चूलिका), ५. विवाहचूलिका (व्याख्याप्रज्ञप्ति की चूलिका), ६. अरुणोपपात, ७. वरुणोपपात, ८. गरुडोपपात, ९. वेलंधरोपपात, १०. वैश्रमणोपपात (१२९) । १२१ – दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणीए । अवसर्पिणी का काल दश कोडाकोडी सागरोपम है ( १२१) । १२२ – दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणीए । उत्सर्पिणी का काल दश कोडाकोडी सागरोपम है (१२२) । अनन्तर-परम्पर-उपपन्नादि - सूत्र १२३ – दसविधा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा अणंतरोववण्णा, परंपरोववण्णा, अणंतरावगाढा, परंपरावगाढा, अणंतराहारगा, परंपराहारगा, अणंतरपज्जत्ता, परंपरपज्जता, चरिमा, अचरिमा । एवं निरंतरं जाव वेमाणिया । नाक दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. अनन्तर - उपपन्न नारक — जिन्हें उत्पन्न हुए एक समय हुआ है। २. परम्पर- उपपन्न नारक — जिन्हें उत्पन्न हुए दो आदि अनेक समय हो चुके हैं। ३. अनन्तर - अवगाढ नारक— विवक्षित क्षेत्र से संलग्न आकाश-प्रदेश में अवस्थित । ४. परम्पर- अवगाढ नारक— विवक्षित क्षेत्र से व्यवधान वाले आकाश-प्रदेश में अवस्थित । ५. अनन्तर आहारक नारक— प्रथम समय के आहारक । ६. परम्पर- आहारक नारक— दो आदि समयों के आहारक ।

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