Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 798
________________ दशम स्थान ७३१ सब करके ऊपर आकाश में चला जाता है। वहाँ से लौटकर उस श्रमण-माहन के प्रबल तेज से प्रतिहत होकर वापिस उसी फेंकनेवाले के पास चला जाता है और उसके शरीर में प्रवेश कर उसे उसकी तेजोलब्धि के साथ भस्म कर देता है, जिस प्रकार मंखली पुत्र गोशालक के तपस्तेज ने उसी को भस्म कर दिया था (१५९)। (मंखलीपुत्र गोशालक ने क्रोधित होकर भगवान् महावीर पर तेजोलेश्या का प्रयोग किया था। किन्तु वीतरागता के प्रभाव से उसने वापिस लौटकर गोशालक को ही भस्म कर दिया था। चरमशरीरी श्रमणों पर तेजोलेश्या का असर नहीं होता है।) आश्चर्यक-सूत्र १६०-दस अच्छेरगा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा उवसग्ग गब्भहरणं, इत्थीतित्थं अभाविया परिसा । कण्हस्स अवरकंका, उत्तरणं चंदसूराणं ॥१॥ हरिवंसकुलुप्पत्ती, चमरुप्पातो य अट्ठसयसिद्धा । अस्संजतेसु पूआ, दसवि अणंतेण कालेण ॥ २॥ दश आश्चर्यक कहे गये हैं, जैसे१. उपसर्ग- तीर्थंकरों के ऊपर उपसर्ग होना। २. गर्भहरण— भगवान् महावीर का गर्भापहरण होना। ३. स्त्री का तीर्थंकर होना। ४. अभावित परिषत् - तीर्थंकर भगवान् महावीर का प्रथम धर्मोपदेश विफल हुआ अर्थात् उसे सुनकर किसी ने चारित्र अंगीकार नहीं किया। ५. कृष्ण का अमरकंका नगरी में जाना। ६. चन्द्र और सूर्य देवों का विमान-सहित पृथ्वी पर उतरना। ७. हरिवंश कुल की उत्पत्ति। ८. चमर का उत्पात—चमरेन्द्र का सौधर्मकल्प में जाना। ९. एक सौ आठ सिद्ध- एक समय में एक साथ एक सौ आठ जीवों का सिद्ध होना। १०. असंयमी की पूजा (१६०)। विवेचन- जो घटनाएं सामान्य रूप से सदा नहीं होती, किन्तु किसी विशेष कारण से चिरकाल के पश्चात् होती हैं, उन्हें आश्चर्य-कारक होने से 'आश्चर्यक' या अच्छेरा कहा जाता है। जैनशासन में भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर के समय तक ऐसी दश अद्भुत या आश्चर्यजनक घटनाएं घटी हैं। इनमें से पहली, दूसरी, चौथी, छठी और आठवीं घटना भगवान् महावीर के शासनकाल से सम्बन्धित हैं और शेष अन्य तीर्थंकरों के शासनकालों से सम्बन्ध रखती हैं। उन विशेष विवरण अन्य शास्त्रों से जानना चाहिए।

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