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၆၃ ခု
स्थानाङ्गसूत्रम्
पुत्र-सूत्र
१३७– दस पुत्ता पण्णत्ता, तं जहा–अत्तए, खेत्तए, दिण्णए, विण्णए, उरसे, मोहरे, सोंडीरे, संवुड्ढे, उवयाइते, धम्मंतेवासी।
पुत्र दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आत्मज- अपने पिता से उत्पन्न पुत्र । २. क्षेत्रज— नियोग-विधि से उत्पन्न पुत्र। ३. दत्तक– गोद लिया हुआ पुत्र । ४. विज्ञक-विद्यागुरु का शिष्य। ५. औरस- स्नेहवश स्वीकार किया पुत्र। ६. मौखर— वचन-कुशलता के कारण पुत्र रूप से स्वीकृत। ७. शौण्डीर— शूरवीरता के कारण पुत्र रूप से स्वीकृत। ८. संवर्धित— पालन-पोषण किया गया अनाथ पुत्र। ९. औपयाचितक— देवता की आराधना से उत्पन्न पुत्र या प्रिय सेवक।
१०. धर्मान्तेवासी— धर्माराधन से लिए समीप रहने वाला शिष्य (१३७)। . अणुत्तर-सूत्र
१३८- केवलिस्स णं दस अणुत्तरा पण्णत्ता, तं जहा—अणुत्तरे णाणे, अणुत्तरे दंसणे, अणुत्तरे चरित्ते, अणुत्तरे तवे, अणुत्तरे वीरिए, अणुत्तरा खंती, अणुत्तरा मुत्ती, अणुत्तरे अजवे, अणुत्तरे मद्दवे, अणुत्तरे लाघवे।
केवली के दश (अनुपम) धर्म कहे गये हैं, जैसे१. अनुत्तर ज्ञान, २. अनुत्तर दर्शन, ३. अनुत्तर चारित्र, ४. अनुत्तर तप, ५. अनुत्तर वीर्य, ६. अनुत्तर शान्ति,
७. अनुत्तर मुक्ति, ८. अनुत्तर आर्जव, ९. अनुत्तर मार्दव, १०. अनुत्तर लाघव (१३८)। कुरा-सूत्र
१३९- समयखेत्ते णं दस कुराओ पण्णत्ताओ, तं जहा पंच देवकुराओ पंच उत्तरकुराओ।
तत्थ णं दस महतिमहालया महादुमा पण्णत्ता, तं जहा—जम्बू सुदंसणा, धायइरुक्खे, महाधायइरुक्खे, पउमरुक्खे, महापउमरुक्खे, पंच कूडसामलीओ। ____ तत्थ णं दस देवा महिड्डिया जाव परिवसंति, तं जहा—अणाढिते जंबुद्दीवाधिपती, सुदंसणे, पियदसणे, पोंडरीए, महापोंडरीए, पंच गरुला वेणुदेवा।
समयक्षेत्र (मनुष्यलोक) में दश कुरा कहे गये हैं, जैसेपाँच देवकुरा, पाँच उत्तरकुरा। वहां दश महातिमहान् दश महाद्रुम कहे गये हैं, जैसे