Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश
२६१
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, कुलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे।
चार प्रकार के वृषभ कहे गये हैं, जैसे१. कोई बैल जाति से सम्पन्न होता है, किन्तु कुल से सम्पन्न नहीं होता। २. कोई बैल कुल से सम्पन्न होता है, किन्तु जाति से सम्पन्न नहीं होता। ३. कोई बैल जाति से भी सम्पन्न होता है और कुल से भी सम्पन्न होता है। ४. कोई बैल न जाति से सम्पन्न होता है और न कुल से ही सम्पन्न होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष जाति से सम्पन्न होता है, किन्तु कुल से सम्पन्न नहीं होता। २. कोई पुरुष कुल से सम्पन्न होता है, किन्तु जाति से सम्पन्न नहीं होता। ३. कोई पुरुष जाति से भी सम्पन्न होता है और कुल से भी सम्पन्न होता है। ४. कोई पुरुष न जाति से सम्पन्न होता है और न कुल से ही सम्पन्न होता है (२३०)।
२३१- चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाम एगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णामं एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे।
पुनः वृषभ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई बैल जातिसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। २. कोई बैल बलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. कोई बैल जातिसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। ४. कोई बैल न जातिसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। २. कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। ४. कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न होता है (२३१)।
२३२- चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णामं एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे।