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स्थानाङ्गसूत्रम्
४. न जनक, न निर्मापक- कोई मेघ अन्न का न जनक होता है, न निर्मापक ही होता है। इसी प्रकार माता-पिता भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. जनक, न निर्मापक- कोई माता-पिता सन्तान के जनक (जन्म देने वाले) होते हैं, किन्तु निर्मापक (भरण-पोषणादि कर उनका निर्माण करने वाले) नहीं होते।
२. निर्मापक, न जनक- कोई माता-पिता सन्तान के निर्मापक होते हैं, किन्तु जनक नहीं होते। ३. जनक भी, निर्मापक भी- कोई माता-पिता सन्तान के जनक भी होते हैं और निर्मापक भी होते हैं।
४. न जनक, न निर्मापक- कोई माता-पिता सन्तान के न जनक ही होते हैं और न निर्मापक ही होते हैं (५३८)। राज-सूत्र
५३९- चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा—देसवासीणाममेगे णो सव्ववासी, सव्ववासी णाममेगे णो देसवासी, एगे देसवासीवि सव्ववासीवि, एगे णो देसवासी णो सव्ववासी।
एवामेव चत्तारि रायाणो पण्णत्ता, तं जहा—देसाधिवती णाममेगे णो सव्वाधिवती, सव्वाधिवती णाममेगे णो देसाधिवती, एगे देसाधिवतीवि सव्वाधिवतीवि, एगे णो देसाधिवती णो सव्वाधिवती।
पुनः मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. देशवर्षी, न सर्ववर्षी— कोई मेघ किसी एक देश में बरसता है, सब देशों में नहीं बरसता। २. सर्ववर्षी, न देशवर्षी— कोई मेघ सब देशों में बरसता है, किसी एक देश में नहीं बरसता। ३. देशवर्षी भी, सर्ववर्षी भी— कोई मेघ किसी एक देश में भी बरसता है और सब देशों में भी बरसता है। ४. न देशवर्षी, न सर्ववर्षा— कोई मेघ न किसी एक देश में बरसता है, न सब देशों में ही बरसता है। इसी प्रकार राजा भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. देशाधिपति, न सर्वाधिपति— कोई राजा किसी एक देश का ही स्वामी होता है, सब देशों का स्वामी नहीं होता।
२. सर्वाधिपति, न देशाधिपति— कोई राजा सब देशों का स्वामी होता है, किसी एक देश का स्वामी नहीं होता।
३. देशाधिपति भी, सर्वाधिपति भी— कोई राजा किसी एक देश का स्वामी भी होता है और सब देशों का भी स्वामी होता है।
४. न देशाधिपति और न सर्वाधिपति— कोई राजा न किसी एक देश का स्वामी होता है और न सब देशों का ही स्वामी होता है, जैसे राज्य से भ्रष्ट हुआ राजा (५३९)। मेघ-सूत्र
५४०— चत्तारि मेहा पण्णत्ता,—पुक्खलसंवट्टए, पज्जुण्णे, जीमूते, जिम्मे।