Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
१३ – पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं हिताए सुभाए, जाव (खमाए णिस्सेस्साए ) आणुगामियत्ता भवति, तं जहा सद्दा, जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा ।
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सुपरिज्ञात (सुज्ञात और प्रत्याख्यात) पांच स्थान जीवों के हित के लिए, शुभ के लिए, क्षम (सामर्थ्य) के लिए, नि:श्रेयस् (कल्याण) के लिए और अनुगामिता (मोक्ष) के लिए होते हैं, जैसे
१. शब्द, २. रूप, ३. गन्ध, ४. रस, ५. स्पर्श (१३) ।
१४ – पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं दुग्गतिगमणाए भवंति, तं जहा—सद्दा, जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा ।
अपरिज्ञात (अज्ञात और अप्रत्याख्यात) पांच स्थान जीवों के दुर्गतिगमन के लिए कारण होते हैं, जैसे— १. शब्द, २. रूप, ३. गन्ध, ४. रस, ५. स्पर्श (१४) ।
१५ – पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं सुग्गतिगमणाए भवंति, तं जहा —सद्दा, जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा ।
सुपरिज्ञात (सुज्ञात और प्रत्याख्यात) पूर्वोक्त पांच स्थान जीवों के सुगतिगमन के लिए कारण होते हैं (१५) । आस्त्रव-संवर-सूत्र
१६ – पंचहि ठाणेहिं जीवा दोग्गतिं गच्छति, तं जहा— पाणातिवातेणं जाव (मुसावाएणं, अदिण्णादाणेणं, मेहुणेणं), परिग्गणं ।
पांच कारणों से जीव दुर्गति में जाते हैं, जैसे—
१. प्राणातिपात से, २. मृषावाद से, ३. अदत्तादान से, ४. मैथुन से, ५. परिग्रह से (१६) ।
१७- पंचहिं ठाणेहिं जीवा सोगतिं गच्छंति, तं जहा— पाणातिवातवेरमणेणं जाव (मुसावायवेरमणेणं, अदिण्णादाणवेरमणेणं, मेहुणवेरमणेणं), परिग्गहवेरमणेणं ।
पांच कारणों से जीव सुगति में जाते हैं, जैसे—
१. प्राणातिपात के विरमण से, २. मृषावाद के विरमण से, ३. अदत्तादान के विरमण से, ४: मैथुन के विरमण से, ५. परिग्रह के विरमण से (१७) ।
प्रतिमा - सूत्र
१८ - पंच पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा— भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा, सव्वतोभद्दा, भदुत्तरपडिमा ।
प्रतिमाएं पांच कही गई हैं, जैसे
१. भद्रा प्रतिमा, २. सुभद्रा प्रतिमा, ३. महाभद्रा प्रतिमा, ४. सर्वतोभद्रा प्रतिमा, ५. भद्रोत्तर प्रतिमा (१८) । इनका विवेचन दूसरे स्थान में किया जा चुका है।