Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
८. देश-विस्तार अनन्त- दिशा या प्रतर की दृष्टि से अनन्त गणना। ९. सर्वविस्तार अनन्त क्षेत्र की व्यापकता की दृष्टि से अनन्त।
१०. शाश्वत-अनन्त- शाश्वतता या नित्यता की दृष्टि से अनन्त (६६)। पूर्ववस्तु-सूत्र
६७- उप्पायपुव्वस्स णं दस वत्थू पण्णत्ता। उत्पादपूर्व के वस्तु नामक दश अध्याय कहे गये हैं (६७)। ६८- अत्थिणत्थिप्पवायपुव्वस्स णं दस चूलवत्थू पण्णत्ता।
अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व के चूलावस्तु नामक दश लघु अध्याय कहे गये हैं (६८)। प्रतिषेवना-सूत्र
६९- दसविहा पडिसेवणा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा
दप्प पमायऽणाभोगे, आउरे आवतीसु य ।
संकिते सहसक्कारे, भयप्पओसा य वीमंसा ॥ १॥ प्रतिषेवना दश प्रकार की कही गई है, जैसे१. दर्पप्रतिषेवना, २. प्रमादप्रतिषेवना, ३. अनाभोगप्रतिषेवना, ४. आतुरप्रतिषेवना, ५. आपत्प्रतिषेवना, ६. शंकितप्रतिषेवना, ७. सहसाकरणप्रतिषेवना, ८. भयप्रतिषेवना, ९. प्रदोषप्रतिषेवना, १०. विमर्शप्रतिषेवना।
विवेचन- गृहीत व्रत की मर्यादा के प्रतिकूल आचरण और खान-पान आदि करने को प्रतिषेवणा या प्रतिसेवना कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में कही गई प्रतिसेवनाओं का स्पष्टीकरण इस प्रकार है
१. दर्पप्रतिसेवना— दर्प या उद्धत भाव से जीव-घात आदि करना। २. प्रमादप्रतिसेवना— विकथा आदि प्रमाद के वश जीव-घात आदि करना। ३. अनाभोगप्रतिसेवना- विस्मृतिवश या उपयोगशून्यता से अयोग्य वस्तु का सेवन करना। ४. आतुरप्रतिसेवना— भूख-प्यास आदि से पीड़ित होकर अयोग्य वस्तु का सेवन करना। ५. आपत्प्रतिसेवना— आपत्ति आने पर अयोग्य कार्य करना। ६. शंकितप्रतिसेवना- एषणीय वस्तु में भी शंका होने पर उसका सेवन करना। ७. सहसाकरणप्रतिसेवना- अकस्मात् किसी अयोग्य वस्तु का सेवन हो जाना। ८. भयप्रतिसेवना- भय-वश किसी अयोग्य वस्तु का सेवन करना। ९. प्रदोषप्रतिसेवना-द्वेष-वश जीव-घात आदि करना। १०. विमर्शप्रतिसेवना- शिष्यों की परीक्षा के लिए किसी अयोग्य कार्य को करना। इन प्रतिसेवनाओं के अन्य उपभेदों का विस्तृत विवेचन निशीथभाष्य आदि से जानना चाहिए (६९)।