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दशम स्थान
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विवेचन—जीव-घात या हिंसा के साधन को शस्त्र कहते हैं। वह दो प्रकार का होता है द्रव्यशस्त्र और भावशस्त्र । सूत्रोक्त १० प्रकार के शस्त्रों में से आदि के छह द्रव्यशस्त्र हैं और अन्तिम चार भावशस्त्र हैं। अग्नि आदि से द्रव्यहिंसा होती है और दुष्प्रयुक्त मन आदि से भावहिंसा होती है। लवण, क्षार, अम्ल आदि वस्तुओं के सम्बन्ध से सचित्त वनस्पति, आदि अचित्त हो जाती हैं। इसी प्रकार स्नेह तेल, घृतादि से भी सचित्त वस्तु अचित्त हो जाती है, इसलिए लवण आदि को भी शस्त्र कहा गया है।
दोष-सूत्र
९४ – दसविहे दोसे पण्णत्ते, तं जहा
तजातदोसे मतिभंगदोसे, पसत्थारदोसे परिहरणदोसे ।
सलक्खण-क्कारण-हेउदोसे, संकामणं णिग्गह-वत्थुदोसे ॥१॥ दोष दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. तज्जात-दोष— वादकाल में प्रतिवादी से क्षुब्ध होकर चुप रह जाना। २. मतिभंग-दोष— तत्त्व को भूल जाना। ३. प्रशास्तृ-दोष- सभ्य या सभाध्यक्ष की ओर से होने वाला दोष, पक्षपात आदि। ४. परिहरण-दोष- वादी के द्वारा दिये गये दोष का छल या जाति से परिहार करना। ५. स्वलक्षण-दोष— वस्तु के निर्दिष्ट लक्षण में अव्याप्ति, अतिव्याप्ति या असंभव दोष का होना। ६. कारण-दोष – कारण-सामग्री के एक अंश को कारण मान लेना, या पूर्ववर्ती होने मात्र से कारण
मानना। ७. हेतु-दोष-हेतु का असिद्धता, विरुद्धता आदि दोष से दोषयुक्त होना। ८. संक्रमण-दोष- प्रस्तुत प्रमेय को छोड़कर अप्रस्तुत प्रमेय की चर्चा करना। ९. निग्रह-दोष— छल, जाति, वितण्डा आदि के द्वारा प्रतिवादी को निगृहीत करना।
१०. वस्तुदोष— पक्ष सम्बन्धी प्रत्यक्षनिराकृत, अनुमाननिराकृत आदि दोषों में से कोई दोष होना (९४)। विशेष-सूत्र ९५- दसविधे विसेसे पण्णत्ते, तं जहा
वत्थु तजातदोसे य, दोसे एगट्ठिएति य । कारणे य पडुप्पण्णे, दोसे णिच्चेहिय अट्ठमे ॥
अत्तणा उवणीते य, विसेसेति य ते दस ॥१॥ विशेष दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. वस्तुदोष-विशेष— पक्ष सम्बन्धी दोष के विशेष प्रकार। २. तज्जात-दोष-विशेष— वादकाल में प्रतिवादी के जन्म आदि सम्बन्धी विशेष दोष। ३. दोष-विशेष - मतिभंग आदि दोषों के विशेष प्रकार।