Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 777
________________ ७१० सामाचारी - सूत्र १०२ - दसविहा सामायारी पण्णत्ता, तं जहा संग्रह - श्लोक इच्छा मिच्छा तहक्कारो आवस्सिया य णिसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य णिमंतणा ॥ उवसंपया य काले, सामायारी दसविहा उ ॥ १ ॥ सामाचारी दश प्रकार की कही गई है, जैसे— १. इच्छा - समाचारी— कार्य करने या कराने में इच्छाकार का प्रयोग । २. मिच्छा - समाचारी — भूल हो जाने पर मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ऐसा बोलना। आचार्य के वचन को 'तह' त्ति कहकर स्वीकार करना । ३. तथाकार - समाचारी ४. आवश्यक - समाचारी— उपाश्रय स्थानाङ्गसूत्रम् बाहर जाते समय 'आवश्यक कार्य के लिए जाता हूं', ऐसा बोलकर जाना । ५. नैषेधिकी- समाचारी— कार्य से निवृत्त होकर के आने पर 'मैं निवृत्त होकर आया हूं' ऐसा बोलकर उपाश्रय में प्रवेश करना । ६. आपृच्छा-समाचारी— किसी कार्य के लिए आचार्य से पूछकर जाना। ७. प्रतिपृच्छा - समाचारी— दूसरों का काम करने के लिए आचार्य आदि से पूछना । ८. छन्दना - समाचारी — आहार करने के लिए साधर्मिक साधुओं को बुलाना । ९. निमंत्रणा - समाचारी —— 'मैं आपके लिए आहारादि लाऊं' इस प्रकार गुरुजनादि को निमंत्रित करना । १०. उपसंपदा - समाचारी ज्ञान, दर्शन और चारित्र की विशेष प्राप्ति के लिए कुछ समय तक दूसरे आचार्य के पास जाकर उनके समीप रहना (१०२) । स्वप्न फल - सूत्र १०३ – समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुमिणे पासित्ता डिबुद्धे, तं जहा १. एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे । २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ५. एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ७. एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची - सहस्सकलितं भुयाहिं तिण्णं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ८. एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे ।

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