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स्थानाङसूत्रम्
७. दर्शनबल।
८. चारित्रबल। ९. तपोबल।
१०. वीर्यबल (८८)। भाषा-सूत्र
८९- दसविहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहासंग्रहणी गाथा
जणवय सम्मय ठवणा, णामे रूवे पडुच्चसच्चे य ।
ववहार भाव जोगे, दसमे ओवम्मसच्चे य ॥१॥ सत्य दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. जनपद-सत्य- जिस जनपद के निवासी जिस वस्तु के लिए जो शब्द बोलते हैं, उसे वहां पर बोलना। __ जैसे कन्नड़ देश में जल के लिए 'नीरु' बोलना। २. सम्मत-सत्य- जिस वस्तु के लिए जो शब्द रूढ है, उसे ही बोलना। जैसे कमल को पंकज बोलना। ३. स्थापना-सत्य- निराकार वस्तु में साकार वस्तु की स्थापना कर बोलना। जैसे शतरंज की गोटों को
हाथी आदि कहना। ४. नाम-सत्य-गुण-रहित होने पर भी जिसका जो नाम है, उसे उस नाम से पुकारना। जैसे निर्धन को
लक्ष्मीनाथ कहना। ५. रूप-सत्य- किसी रूप या वेष के धारण करने से उसे वैसा बोलना। जैसे स्त्री वेषधारी पुरुष को स्त्री
कहना।
६. प्रतीत्य-सत्य– अपेक्षा से बोला गया वचन प्रतीत्य-सत्य कहलाता है। जैसे अनामिका अंगुली को
कनिष्ठा की अपेक्षा बड़ी कहना और मध्यमा की अपेक्षा छोटी कहना। ७. ब्यवहार-सत्य— लोक-व्यवहार में बोले जाने वाले शब्द व्यवहार-सत्य कहलाते हैं। जैसे— पर्वत ___ जलता है। वास्तव में पर्वत नहीं जलता, किन्तु उसके ऊपर स्थित वृक्ष आदि जलते हैं। ८. भाव-सत्य- व्यक्त पर्याय के आधार से बोला जाने वाला सत्य। जैसे— काक के भीतर रक्त-मांस ___ आदि अनेक वर्ण की वस्तुएं होने पर भी उसे काला कहना। ९. योग-सत्य– किसी वस्तु के संयोग से उसे उसी नाम से बोलना। जैसे— दण्ड के संयोग से पुरुष को
दण्डी कहना। १०. औपम्य-सत्य- किसी वस्तु की उपमा से उसे वैसा कहना। जैसे— चन्द्र के समान सौम्य मुख होने
से चन्द्रमुखी कहना (८९)। ९०- दसविधे मोसे पण्णत्ते, तं जहा
कोधे माणे माया, लोभे पिजे तहेव दोसे य ।
हास भए अक्खाइय, उवघात णिस्सिते दसमे ॥१॥ मृषा (असत्य) वचन दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे