________________
दशम स्थान
७०१
१. उपधि-संक्लेश- वस्त्र-पात्रादि उपधि के निमित्त से होने वाला संक्लेश। २. उपाश्रय-संक्लेश- उपाश्रय या निवास स्थान के निमित्त से होने वाला संक्लेश। ३. कषाय-संक्लेश-क्रोधादि के निमित्त से होने वाला संक्लेश। ४. भक्त-पान-संक्लेश— आहारादि के निमित्त से होने वाला संक्लेश। ५. मनःसंक्लेश- मन के उद्वेग से होने वाला संक्लेश। ६. वाक्-संक्लेश + वचन के निमित्त से होने वाला संक्लेश। ७. काय-संक्लेश— शरीर के निमित्त से होने वाला संक्लेश। ८. ज्ञान-संक्लेश- ज्ञान की अशुद्धि से होने वाला संक्लेश। ९. दर्शन-संक्लेश-दर्शन की अशुद्धि से होने वाला संक्लेश। १०. चारित्र संक्लेश— चारित्र की अशुद्धि से होने वाला संक्लेश (८६)।
८७- दसविधे असंकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा—उवहिअसंकिलेसे, उवस्सयअसंकिलेसे, कसायअसंकिलेसे, भत्तपाणअसंकिलेसे, मणअसंकिलेसे, वइअसंकिलेसे, कायअसंकिलेसे, णाणअसंकिलेसे, दंसणअसंकिलेसे, चरित्तअसंकिलेसे।
असंक्लेश (विमल-भाव) दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. उपधि-असंक्लेश- उपधि के निमित्त से संक्लेश न होना। २. उपाश्रय-असंक्लेश—निवास-स्थान के निमित्त से संक्लेश न होना। ३. कषाय-असंक्लेश– कषाय के निमित्त से संक्लेश न होना। ४. भक्त-पान-असंक्लेश- आहारादि के निमित्त से संक्लेश न होना। ५. मन:असंक्लेश- मन के निमित्त से संक्लेश न होना, मन की विशुद्धि। ६. वाक्-असंक्लेश- वचन के निमित्त से संक्लेश न होना। ७. काय-असंक्लेश- शरीर के निमित्त से संक्लेश न होना। ८. ज्ञान-असंक्लेश- ज्ञान की विशुद्धता। ९. दर्शन-असंक्लेश- सम्यग्दर्शन की निर्मलता।
१०. चारित्र असंक्लेश— चारित्र की निर्मलता (८७)। बलं-सूत्र
८८- दसविधे बले पण्णत्ते, तं जहा—सोतिंदियबले, (चक्खिदियबले, घाणिंदियबले, जिभिदियबले), फासिंदियबले, णाणबले, दंसणबले, चरित्तबले, तवबले, वीरियबले।
बल दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-बल।
२. चक्षुरिन्द्रिय-बल। ३. घ्राणेन्द्रिय-बल।
४. रसनेन्द्रिय-बल। ५. स्पर्शनेन्द्रिय-बल।
६. ज्ञानबल।