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________________ ६९४ स्थानाङ्गसूत्रम् ८. देश-विस्तार अनन्त- दिशा या प्रतर की दृष्टि से अनन्त गणना। ९. सर्वविस्तार अनन्त क्षेत्र की व्यापकता की दृष्टि से अनन्त। १०. शाश्वत-अनन्त- शाश्वतता या नित्यता की दृष्टि से अनन्त (६६)। पूर्ववस्तु-सूत्र ६७- उप्पायपुव्वस्स णं दस वत्थू पण्णत्ता। उत्पादपूर्व के वस्तु नामक दश अध्याय कहे गये हैं (६७)। ६८- अत्थिणत्थिप्पवायपुव्वस्स णं दस चूलवत्थू पण्णत्ता। अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व के चूलावस्तु नामक दश लघु अध्याय कहे गये हैं (६८)। प्रतिषेवना-सूत्र ६९- दसविहा पडिसेवणा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा दप्प पमायऽणाभोगे, आउरे आवतीसु य । संकिते सहसक्कारे, भयप्पओसा य वीमंसा ॥ १॥ प्रतिषेवना दश प्रकार की कही गई है, जैसे१. दर्पप्रतिषेवना, २. प्रमादप्रतिषेवना, ३. अनाभोगप्रतिषेवना, ४. आतुरप्रतिषेवना, ५. आपत्प्रतिषेवना, ६. शंकितप्रतिषेवना, ७. सहसाकरणप्रतिषेवना, ८. भयप्रतिषेवना, ९. प्रदोषप्रतिषेवना, १०. विमर्शप्रतिषेवना। विवेचन- गृहीत व्रत की मर्यादा के प्रतिकूल आचरण और खान-पान आदि करने को प्रतिषेवणा या प्रतिसेवना कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में कही गई प्रतिसेवनाओं का स्पष्टीकरण इस प्रकार है १. दर्पप्रतिसेवना— दर्प या उद्धत भाव से जीव-घात आदि करना। २. प्रमादप्रतिसेवना— विकथा आदि प्रमाद के वश जीव-घात आदि करना। ३. अनाभोगप्रतिसेवना- विस्मृतिवश या उपयोगशून्यता से अयोग्य वस्तु का सेवन करना। ४. आतुरप्रतिसेवना— भूख-प्यास आदि से पीड़ित होकर अयोग्य वस्तु का सेवन करना। ५. आपत्प्रतिसेवना— आपत्ति आने पर अयोग्य कार्य करना। ६. शंकितप्रतिसेवना- एषणीय वस्तु में भी शंका होने पर उसका सेवन करना। ७. सहसाकरणप्रतिसेवना- अकस्मात् किसी अयोग्य वस्तु का सेवन हो जाना। ८. भयप्रतिसेवना- भय-वश किसी अयोग्य वस्तु का सेवन करना। ९. प्रदोषप्रतिसेवना-द्वेष-वश जीव-घात आदि करना। १०. विमर्शप्रतिसेवना- शिष्यों की परीक्षा के लिए किसी अयोग्य कार्य को करना। इन प्रतिसेवनाओं के अन्य उपभेदों का विस्तृत विवेचन निशीथभाष्य आदि से जानना चाहिए (६९)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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