Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दशम स्थान
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आदि का प्रमाण एक ही समान जानना चाहिए (६१) ।
अवगाहना- सूत्र
६२ – बायरवणस्सइकाइयाणं उक्कोसेणं दस जोयणसयाई सरीरोगाहणा पण्णत्ता । बादर वनस्पतिकायिक जीवों के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (१०००) योजन ( उत्सेध योजन) ई है । (यह अवगाहना कमल की नाल की अपेक्षा से है ) (६२) ।
६३— जलचर-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं दस जोयणसयाई सरीरोगाहणा पण्णत्ता । जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (१०००) योजन कही गई है (६३) ।
६४— उरपरिसप्प - थलचर- पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं ( दस जोयणसताइं सरीरोगाहणा पण्णत्ता ) ।
उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (१००० ) योजन कही गई है (६४)।
तीर्थंकर - सूत्र
६५ – संभवाओ णं अरहातो अभिणंदणे अरहा दसहिं सागरोवमकोडिसतसहस्सेहिं वीतिक्कंतेहिं समुप्पण्णे ।
अर्हन् संभव के पश्चात् अभिनन्दन अर्हन् दश लाख करोड़ सागरोवम बीत जाने पर उत्पन्न हुए थे (६५) । अनन्त-भेद-सूत्र
६६ - दसविहे अनंतए पण्णत्ते, तं जहा—णामाणंतए ठवणाणंतए, दव्वाणंतए, गणणाणंतए, पएसाणंतए, एगतोणंतए, दुहतोणंतए, देसवित्थाराणंतए, सव्ववित्थाराणंतए सासताणंताए ।
अनन्त दश प्रकार का कहा गया है, जैसे—
१. नाम - अनन्त — किसी वस्तु का 'अनन्त' ऐसा नाम रखना ।
२.
स्थापना- अनन्त — किसी वस्तु में 'अनन्त' की स्थापना करना ।
३. द्रव्य-अनन्त—— परिमाण की दृष्टि से 'अनन्त' का व्यवहार करना ।
४.
गणना- अनन्त — गिनने योग्य वस्तु के बिना ही एक, दो, तीन, संख्यात, असंख्यात, अनन्त, इस प्रकार गिनना ।
५.
प्रदेश - अनन्त
प्रदेशों की अपेक्षा 'अनन्त' की गणना ।
६. एकत: अनन्त — एक ओर से अनन्त, जैसे अतीतकाल की अपेक्षा अनन्त समयों की गणना ।
७.
द्विधा - अनन्त — दोनों ओर से अनन्त, जैसे—– अतीत और अनागत काल की अपेक्षा अनन्त समयों की गणना ।